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टीकार्य :- 'चउच्वि' त्यादि० वनस्पतिओ प्रसिध्ध छे. ते ज काय-शरीर छे जेओने ते वनस्पतिकायो, तेओ ज वनस्पतिकायिको, तृणनी जातिवाळा वनस्पतिकायिको ते तृगवनस्पतिकायिको अर्थात् बादरो. अग्र-आगळ बीज छे जेओनुं अग्रबीजो, कोरंटक विगेरे, अथवा अग्र-आगळमां बीज छे जेओने ते अग्रबीजो-त्रीही [ चोखानी जात ] विगेरे. मूलमां ज बीज छे जेओने ते मूलबीजो-कमलना कंद विगेरे, एवी रीते पर्वबीजो-शेलडी विगेरे, स्कंधबीजो- सल्लकी विगेरे. स्कंध एटले थड आ सूत्रो चीजा वनस्पति जीवोनो निषेध करनारा नथी, तेथी बीजरुह - बीजथी उत्पन्न थनार अने सम्मूर्च्छन- स्वाभाविक उत्पन्न धनार विगेरे वनस्पतिओनो अभाव मानवो नहि. जो अभावनी मानीए तो बीजा सूत्र साथै विरोध आवे. (सू० २४४) हमणां ज वनस्पति जीवोना चार स्थानक कथा, हवे जीवना साधर्म्यथी नारकर्जावाने आश्रयीने ते कहे छे 'चउही' त्यादि० सुगम छे. विशेष एके ठाणेहिं ति० कारण वडे 'अहुणोववन्ने' ति० तत्काल उत्पन्न थयेल, नीकळी गयेल छे शुभ कर्ममांथी ते निरय-नरक, तेमां उत्पन्न थवेल ते नैरयिक, तेनुं अनन्य (बीजुं नहि एवं) उत्पत्तिनुं स्थानपणुं बताववा माटे कहे छे - नरकलोकमां, ते स्थानथी आ मनुष्योना लोक क्षेत्रविशेष प्रत्ये ' हव्व' शीघ्र आववा माटे इच्छे 'नो चेव' ति० नहीं. 'ण' वाक्यालंकारमां छे. ' संचाए ' आववा माटे समर्थ, अर्थात् आवी शके नहि. 'समुन्भूयं 'ति० अत्यंत प्रबलपणाए उत्पन्न थयेली, पाठांतरथी सम्मुखभूतां एक हेला मात्रमां ( थोडी वारम) उत्पन्न थयेली, पाठांतरथी समहद्भूतां अथवा सुमहद्भूतां जे महान् नथी तेने महान् थवं ते महद्भुत, तेनी साथे जे ते समहद्भूता अथवा सुमहद्भुता, एवी दुःखरूप वेदनाने अनुभवतो थको इच्छा करे, आ मनुष्यलोकमा आववानी इच्छानुं प्रथम कारण (१), असमर्थनुं ए ज
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