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भीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥४२५॥४
अन्तर
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अर्थात् ते शिलाओ आगळना भागमा विष्कंभ( लंबाई )वाळी छे. जेम 'जंबुद्दीव दीव भरहरवएसु वाससु' ४ स्थानइत्यादि सूत्रोवंडे कालमान विगरेथी आरंभीने चूलिका पर्यंत कहेल छे, एवी जरीते धातकीखंडना पूर्वाद्ध अने पश्चिमा मां पण काध्ययने कहेवा योग्य छे, एक मेरुना संबंधवाळी वक्तव्यतानुं अन्य चार मेरुने विषे समानपणुं छे ते ज हकीकतने सूत्रकार कहे छे.
उद्देशः २ 'एव 'मित्यादि. आ वर्णनरूप अतिदेशने संग्रहगाथावडे कहे छे 'जंबृद्दीवे' त्यादि. जंबूद्वीपर्नु आ वर्णन ते
द्वीपद्वाराणि जंबुद्वीपक, अथवा जंबूद्वीप प्रत्ये प्राप्त थाय छे ते जंबूद्वीपग, क्यांक एवो पाठ छ के जंबुद्वीपे यत्'-जंबूद्वीपमा जे वर्णन, अवश्यभावीपणाथी अथवा कहेवा योग्य होवाथी आवश्यक, ते जंबूद्वीपकावश्यक अथवा जंबुद्वीपगावश्यक.
द्वीपाः पावस्तुजातं-वस्तुनो प्रकार ( अहिं 'तु' शब्द पूरण अर्थमां छे.) कयुं आदि सूत्र अने अंत्य सूत्र कयुं ? माटे सूत्रकार कहे छे-सुपमसुपमा लक्षण काळ ' मूत्र' थी आरंभीने यावत् मेरुनी चूलिका पर्यंत जे वर्णन (जंबूद्वीप संबंधी ) कयु छ ते
तालकवर्णन धातकखिंडमां अने पुष्करवरद्वीपमा जे पूर्व अने पश्चिम बे विभाग छे ते बन्ने द्वीपना प्रत्येक पूर्वार्ध अने पश्चिमार्धमां लशाः घातअथवा पूर्वार्ध अने पश्चिमार्ध खंडना क्षेत्रोमा अन्यूनाधिक अर्थात् समान जाणवू. (सू० ३०२)
कीविष्कजंब्रद्वीवस्स णं दीवस्स चत्तारि दारा पं०२०-विजये वेजयंते जयंते अपराजिते, ते णं दारा
भादि सू० चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं तावतितं चेव पवसेणं पं०-तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डीया जाव पलि
३०३ओवमट्रितीता परिवसंति विजते वेजयंते जयंते जपराजिते । सू०३०३, जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्व
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