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श्रीस्था- प्रमाणे-'उप्पन्ने इ वा' इत्यादि, अहिं दृष्टिवादरूप प्रवचनने विषे समस्त नयना वादने विषे बीजभूत मातृकापदो होय छे, नाङ्गसूत्र ते आ प्रमाणे-" उप्पन्ने इ वा विगए इ वा धुवे इ वा ।" अथवा 'आ' मातृकापदोनी जेम अ, आ विगेरे अक्षरो, समग्र सानुवाद शब्दशास्त्रना अर्थना व्यापारवडे व्यापक होवाथी मातृकापदो छे. पर्याय एकक ते एकपर्याय. पर्याय, विशेष अने धर्म आ ॥४२०॥४ शब्दो एकार्थवाचक छे. ते अनादिष्ट-सामान्यथी वर्णादि अने आदिष्ट-विशेषथी कृष्णादि. संग्रह एकक ते शालि. भावार्थ आ
प्रमाणे जाणवो-संग्रह-समुदायने आश्रयीने जेम एकवचनपूर्वक शब्दनी प्रवृत्ति होय छे तेम एक पण शालि(चोखा)नो कण शालि कहेवाय छे अने घणा शालिना दाणा पण शालि कहेवाय छ, केम के लोकमां तेम जोवाय छे. 'दविए एक्कए' क्यांक आ पाठ
छे त्या विषयभूत द्रव्यने विषे एकक इत्यादि व्याख्यान करवु. (सू० २९७)' कतीति'-केटला ? अर्थात् प्रश्नपूर्वक * अचोकसनी जेम संख्यावाचक बहवचनांत छे. तेमां द्रव्यो केटला ? ते द्रव्य कति अर्थात केटला द्रव्यो छे ? अथवा द्रव्यना
विषयवाळो 'कति' शब्द ते द्रव्यकति, एम ज मातृकापद विगेरेने विषे पण जाणवू. विशेष ए के-संग्रह-शालि, यव अने घउं विगरे. (सू०२९८) नामरूप जे सर्व ते नामसर्व अथवा सचित्त विगेरे बस्तुनो +सर्व एवं जे नाम ते नामसवे अथवा नामवडे सर्व अथवा सर्व एबुं नाम छ जेनुं एव। समासथी नाम शन्दनो पूर्व निपात करेल छ अर्थात् सर्वनामने बदले नाम सर्वे कहेल छ, तथा स्थापनया-आ सर्व छे एवी कल्पनावडे अक्ष विगेरे द्रव्य सर्वे ते स्थापनासर्व छे. अथवा स्थापना ज अक्षादि द्रव्यरूप सर्व ते स्थापनासर्व छे. आदेशनमादेशः-उपचाररूप व्यवहार ते अति घणी वस्तुना विभागमां अथवा
x सर्व शब्दनो अक्षर उच्चार करवारूप. + व्यक्किना अपेक्षाए जेम कोई पुरुषर्नु सर्व एबुं नाम होय तेने सर्व शब्दथी बोलाय छे.
४ स्थान. काध्ययने उद्देशः २ एक-ऋति सर्वशब्दस्वरूपम् ० २९७
२९९
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॥४२०॥
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