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संपादनथी आ एक भंग. बीजा भंगमां बीजुं पद चंक-वक्र अर्थात् फलादिने विषे विपरीत, त्रीजा भंगमां पहलं पद वक्रवांको अने चोथो भंग सुगम छे. अथवा पहेला ऋजु--सरल, पछी पण ऋजु अथवा मूळमां सरल अने छेडे पण सरळ, एम ऋजु अने वक्र पदवडे चार भांगा करवा. आ दृष्टांतरूप छे. पुरुष तो ऋजु एटले बहारथी शरीर, गति, वाणी अने चेष्टा विगेरेथी सरल तेमज अंतरथी कपटरहितपणाए सुसाधुनी माफक ऋजु, आ एक भंग. तथा ऋजु तो बहारथी पूर्वनी जेम चंक-वक्र अने अंतरमां कारणवशात् कपटीपणाए सरलभाव बतावनार दुष्ट साधुनी जेवो, आ बीजो मंग. त्रीजो भंग तो कारणवशात् बहारथी बतावेल वक्रभाव अने अंतरथी कपट रहित, प्रवचन- शासनना गोपननी रक्षामां प्रवर्तेल साधुनी जेम. चोथो भंग तो बने रतिथी वक्र, तथाप्रकारना शठ-कपटीनी माफक अथवा कालना भेदवडे पण व्याख्या करवी. हवे ऋजु अने ऋजुपरिणत विगेरे अगियार चोभंगीओ लाघव (संक्षेप) माटे अतिदेशवडे कहे छे- 'एव' मिति ० आ शब्दवडे ऋजु नाम ऋजु इत्यादिवडे बतावेल क्रमथी भांगाना क्रमवडे 'येथे' ति० जे प्रकारे परिणत रूपादि विशेषणवडे [ उन्नत प्रणत ] विशेषितपणाए ऋजु-वक्र छे, आ अर्थ छे. उन्नत अने प्रणत- आ बन्ने शब्द उन्नत - उन्नत अने उन्नत - प्रणत परस्पर प्रतिपक्षभूत ( प्रणत- उन्नत अने प्रणत- प्रणत ) वडे सरखो पाठ करेल छे. 'तथा' ते प्रकारवडे परिणत अने रूपादि वे विशेषणवाळा ऋजु अने वक्र शब्दवडे पण पाठ कहेवो. क्यां सुधी ते कहेवो ? ते दर्शावता कहे छे- 'जाव परक्कमे' ति० ऋजु -वक्र वृक्ष सूत्रथी यावत् तेर सूत्र पर्यंत. तेमां ऋजु २ ऋजुपरिणत २ ऋजुरूप २ लक्षणवाळा छ सूत्रो, वृक्ष दृष्टांत अने पुरुष दाष्टतिकस्वरूप छे, अने मन प्रमुख शेष सात सूत्रो दृष्टांत रहित छे. ( सू० २३६ ) हजु पुरुषना विचार संबंधी ज कहे छे के
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