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विगेरे चार प्रकारनी माया छे. हळदरना रंग समान, खंजनना गंग-समान, कादवना रंग समान अने कृमिरागना रंग समान क्रमशः संज्वलनादि चार प्रकारनो लोभ छे. पक्खचउमासवच्छर-जावज्जीवाणुगामिणो कमसो। देवनरतिरियनारय-गइसाहणहेयवो भणिया॥९५
संज्वलननो कषाय एक पक्ष* पर्यंत रहे छे अने देवनी गतिने साधवानो हेतु छे. प्रत्याख्यानावरण कषाय चार मास पर्यत रहे छे तथा मनुष्यगतिने साधवाना हेतुभृत छे. अप्रत्याख्यानावरण कषाय एक वर्ष पर्यंत रहे छे अने तिर्यचनी गतिने साधवाना हेतभत छे. अनंतानुबंधी कपाय यावत जीव पर्यंत रहे छे अने नरकगति साधवाना कारणभूत छे (मु०२९३) हमणा ज कपायो कह्या अने कषायोवडे संसार थाय छे माटे संसारनुं स्वरूप कहे छे
चउविहे संसारे पं०२०-णेरतियसंसारे जाव देवसंसारे । चउव्विहे आउते पं० तं०णेरतिआउते जाव देवाउते । चउव्विहे भवे पं० सं०-नेरतियभवे जाव देवभवे । सू० २९४, चउ- | विहे आहारे पं० २०-असणे पाणे खाइमे साइमे । चउविहे आहारे पं० २०-उवक्खरसंपन्ने उवक्खडसंपन्ने सभावसंपन्ने परिजुसियसंपन्ने । सू० २९५
* आ स्थितिनुं कथन सामान्यत: व्यवहारनयने आश्रयीने छे निश्चयथी तो बाहुबलि मुनिने संज्वलन मान एक वर्ष पर्यंत रहेक छे तथा प्रसन्नचंद्र राजर्षिने अनंतानुबंधीनो क्रोध अंतर्मुहूर्त मात्र रहेल छे.
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