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नुबंधी विगेरे मायामां अत्यंत, अल्प, अल्पतर अने अल्पतम एम चार भेदो होय छे. ते कारणथी ज अनंतानुबंधी मायानो उदय छते पण देवपणुं विगेरे विरुद्ध थतुं नथी अर्थात् देवादिमा उत्पन्न थाय छे. एवी रीते मान विगरे पण जाणवा. वाचनातरमा तो प्रथम क्रोध अने मानना सूत्रो छे. त्यारबाद मायाना सूत्रो छे, तेमां क्रोध सूत्रो "चत्तारि राइओ पन्नत्ताओ तं०पब्वयराई पुढविराई रेणुराई जलराई, एवामेव चउविहे कोहे 'इत्यादि. चार प्रकारनी राइ-फाट कहेली छे, ते आ प्रमाण-पर्वतनी फाट, पृथ्वीनी फाट, रेणु(वालुका)नी फाट अने जलनी रेखा. ए दृष्टांते चार प्रकारनो क्रोध छे इत्यादि मायासूत्रोनी जेम कहेल छे. फलसूत्रोमां तो अनुप्रविष्ट-मायाना उदयमा वर्तनार. शिलाना विकाररूप शैल, ते ज स्थंभ अर्थात् शैलथंभ. एवी रीते बीजा स्तंभो पण जाणवा. विशेष ए के-एक अस्थि (हाड) अने दारु (लाकडं) प्रसिद्ध छे. तिनिश एटले वृक्षविशेषनी लता(कंवा) ते तिनिशलता अर्थात् नेतरनी छडी, ते अत्यंत कोमल होय छे.माननी पण शैलस्तंभ विगेरेथी समानता छे केम के मानवालाने नमनना अभावविशेषथी समानता जाणवी. मान पण अनंतानुबंधी विगेरे क्रमथी जाणवू. तेनुं फलसूत्र स्पष्ट छे. कृमि-रंगमा वृद्धसंप्रदाय आ प्रमाणे छ-मनुष्यादिनां रुधिरने लईने कोईपण योग(वस्तु)वडे संयुक्त करीने भाजनमा राखे छे, त्यारवाद तेमां कृमिओ उत्पन्न थाय छे, ते कीडाओ वायुनी इच्छावाळा थया थका छिद्रोद्वारा नीकळीने समीपमा भ्रमण करता थका मुखथी लाळ मृके छे ते कृमिसूत्र. कहेवाय छे, ते पोताना स्वाभाविक रंगवडे रंगित ज होय छे. बीजाओ कहे छे के-रुधिरमा जे कृमिओ उत्पन्न थाय छे तेओने रुधिरमा ज मसळीने, कचराना भागने दूर करीने, तेना रसमां
* अनंतानुबंधी क्रोध विगेरे प्रत्येकना चार चार भेद करवाथी सोळ कषायना चोसठ भेद थाय छे.
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