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तहेव जाव हलिहरागरत्तवत्थसमाणं लोभमणुपविटे जीवे कालं करेइ देवेसु उववजति । सू० २९३
मूलार्थ:-चार प्रकारना केतन-वस्तुनुं वक्रत्व कहेल छे, ते आ प्रमाणे-वासना मूलनु वक्रत्व, घेटाना शीगडानुं वक्रत्व, गायना मूत्रनुं वक्रत्व अने अवलेखनिका अर्थात् वांसनी झीणी छालन वक्रत्व ( वांकपणुं). ए दृष्टांते चार प्रकारनी माया कहेली
छे, ते आ प्रमाणे-वांसना मूल समान अत्यंत वक्र (गूढ) माया ते अनंतानुबंधी,घेटाना शींगडा समान वक्र माया ते अप्रत्याख्यानी, | गोमत्रना समान वक्र माया ते प्रत्याख्यानावरणी अने वांसनी झीणी छाल समान वक्र माया ते संज्वलनी.वांसना मूल समान वक्र मायामा प्रविष्ट (प्रवेश करेल) जीव काल करे छे तो नैरयिकोमा उत्पन्न थाय छे. घेटाना शींगडा समान वक्र मायामां प्रविष्ट जीव काल करे छे तो तियंचयोनिक जीवोमां उत्पन्न थाय छे. गोमूत्र समान वक्र मायामां प्रविष्ट जीव काल करे छे तो मनष्योमा उत्पन्न थाय छे. वांसनी झीणी छाल समान वक्र मायामां प्रविष्ट जीव काल करे छे तो देवोमा उत्पन्न थाय छे. चार प्रकारना स्थंभ कहेला छे, ते आ प्रमाणे-शैल-पत्थरनो स्थंभ( थांभलो), अस्थि-हाडकानो थांभलो, दारु-लाकडानो थाभलो अने तिनिशलता-नेतरना थांभलो. ए दृष्टांते चार प्रकारनो मान कहेल छे, ते आ प्रमाणे-शैलस्थंभ समान मान-अत्यंत अक्कड स्वभाववाळो, अस्थिस्थंभ समान मान दुःखे नमावी शकाय एवो, काष्ठस्थंभ समान मान थोडा प्रयासे नमावी शकाय एवो अने नेतरना स्थंभ( छडी) समान मान सहज नमावी शकाय एवो अनुक्रमे अनंतानुबंधी विगेरे जाणी लेवो. शैलस्थंभ समान मानमां प्रविष्ट जीव काल करे छे तो नैरयिकोमा उपजे छे, एवी रीते यावत् नेतरना स्थंभ समान मानमा प्रविष्ट जीव काल करे छे तो देवोमां उपजे छे. चार प्रकारना वस्त्रो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-मनु
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