________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
भावोवडे हीन (हलको) लींबडो विगेरे, आ बीजो भांगो. कोई एक वृक्ष द्रव्यथी प्रणत- नीचो ( नानो) ते ज जात्यादि भाववडे ऊंचो (श्रेष्ठ) अशोकादि, आ त्री जो भांगो. कोई एक वृक्ष द्रव्यथी ज नानो ते ज जात्यादिथी हीन लींबडो विगेरे, आ चोथो भांगो, अथवा पहेला ऊंचो अने हमणां पण ऊंचो ज-ए प्रमाणे कालनी अपेक्षाए चार भांगा जाणवा. (१), 'एव' मित्यादि० एवी रीते वृक्षनी जेम पुरुषोना चार प्रकारो, ते साधुओ अथवा गृहस्थोना पण छे. कुल, ऐश्वर्य विगेरे लौकिक गुगोवडे अथवा गृहस्थपर्याय मां शरीरवडे ऊंचो (श्रेष्ठ), वळी लोकोत्तर ज्ञानादिवडे दीक्षा पर्यायमां श्रेष्ठ अथवा उत्तम भाववडे उन्नत, वळी कामदेव विगेरेनी जेम शुभ गतिवडे श्रेष्ठ, आ पहेलो भंग. 'तहेब' ति० वृक्ष सूत्रनी माफक आ सूत्र पण 'जाव'त्ति० यावत् 'पणए नाम एगे पणए' ति० एम चार भंग पर्यंत कहे. तेमां उन्नत - कुलादिवडे अने प्रणत-ज्ञान अने बिहार विगेरेमां हीनपणार्थी शैलक राजर्षिनी जेम अथवा दुर्गतिमां जवाथी ब्रह्मदत्तनी माफक बीजो भंग जाणवो. फरीथी वैराग्यने प्राप्त थयेल शैल के राजर्षिनी माफक अथवा मेतार्यनी जेम प्रणत-उन्नत नामनो श्रीजो भंग अने उदायीनृपने मारनारनी जेम अथवा काल सौ करिक (कसाई) नी माफक प्रणत-प्रगत चोथो भंग जाणवो. (२), ए रीते दृष्टांत अने दाष्टतिकना सूत्रमां सामान्यथी कहीने तेना विशेष सूत्रोने कहे छे - ऊंचाईपणाए एक वृक्ष, उन्नत परिणत-अशुभ रसादिरूप नीचपणाने छोडीने शुभ रसादिरूप श्रेष्ठपणावडे परिणत छे, आ एक भंग. बीजा भांगामां प्रणतपरिणत- कट्टेल लक्षणविशिष्ट उन्नतपणाने छोडवाथी, अने ए बेना आधारे त्रीजो अने चोथो भांगो जाणवो. (३), आ चतुभंगी सूत्रनी विशेषता आ प्रमाणे छे-पहेलां उन्नतपणुं अने प्रणतपणुं सामान्यथी कां. आ सूत्रमां तो पूर्वनी अवस्थाथी अन्य अवस्थाने पामवावडे विशेष रूपे कहेल छे. एवी रीते उपमेयमां पण परिणत सूत्र जाणवुं (४), परिणाम आकार, बोध अने क्रियाना भेदथी त्रण प्रकारे छे, तेमां आकारनो आश्रय करीने रूपं सूत्र- छे.
५७
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir