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दोषोने देखाडे छे, आ विक्षेपणी कथानो प्रथम भेद. एम ज परसमयना कथनपूर्वक स्वसमयनो स्थापनार- स्वसमयना गुणोनुं स्थापन करनार होय छे, आ बीजो भेद. 'सम्माबाय 'मित्यादि० तेनो अर्थ एछे के परसमयोने विषे पण घुणाक्षरन्यायवडे जिनागमना तखने मळतापणाथी आवपरीततच्चोनो वाद-सम्यग्वाद छे, तेने कहे छे. तेटला प्रमाणना सम्यग्वाद ने कहीने परसमयाने विषे जिनप्रणीत तवोधी विरुद्ध होवाथी जे मिथ्यावाद छे तेना दोष देखाडवापूर्वक कथन करे छे, आ श्रीजी भेद. परसमयान विषे मिथ्यावादनुं कथन करीने सम्यगवादने स्थापनार होय छे, आ चोथो भेद अथवा सम्यग्वाद - अस्तिपणुं, मिथ्यावाद - नास्तिपणुं तेमां आस्तिकवादीनी दृष्टिओ ( दर्शनो ) ने कहीने नास्तिकवादीनी दृष्टिओने कहे छे ते प्रकारांतरे श्रीजो भेद छे अने नास्ति दृष्टिए कहने पछी आस्तिकवादीनी दृष्टिए कहे छे ते चोथो भेद छे. इहलोक - मनुष्यजन्मना स्वरूप कथन करवावडे संवेगनी ते इहलोकसंवेगनी, आ सर्व मनुष्यपणुं असार छे, अध्रुव छे, केळना स्तंभ जेबुं छे इत्यादि स्वरूपवाळी जाणवी, एमज देवादि भवना स्वरूपना कथनरूप परलोक संवेदनी, अर्थात् देवो पण ईर्ष्या, खेद, भय अने वियोग विगरे दुःखोबडे पराभव पामेला छे, तो तिर्यच विगेरेनुं कहेतुं शुं ? जे आ मारुं शरीर ते पण अशुचि-अपवित्र छे, अशुचिरूप कारणथी उत्पन्न थयेलुं छे, अशुचिद्वारथी जन्मेलुं छ; माटे शरीरमां प्रतिबंध करवा जेवुं कोई स्थान नथी इत्यादि कथनरूप आत्मशरीरसंवेगनी कथा, एमज परशरीरसंवेगनी अथवा मृतक शरीरना कथनरूप परशरीरसंवेगनी. आ लोकमां दुष्कृत्यो- चोरी विगेरे कर्मों आ लोकमां दुःख, ए ज कर्मरूप वृक्षथी उत्पन्न थयेल होवाथी फल अर्थात् दुःखफल, तेन विपाक - अनुभव ते दुःखफलविपाकवडे संयुक्त, ते दुःखफलविपाकसंयुक्त थाय छे. चोरो विगेरेनी माफक आ निर्वेदनी
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