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श्री सिद्धचक्राय नमः
श्री अवन्तिपार्श्वनाथाय नमः
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श्री केशरियानाथाय नमः
मालवप्रदेश की हृदयस्थली अवन्तिका नगरी ।
अवन्तिका नगरी अपने आपमें एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है । इस नगरी को प्राचीन काल से ही मालवप्रदेश की राजधानी बनने का गौरव प्राप्त हुआ है । इस नगरी में कुछ ऐसा आकर्षण है ही जो इस नगरी को राजा..... महाराजा.... पंडितों और साधकों ने सदा यहीं रहकर अपने को धन्य समझा है ।
इस नगरी से आकर्षित होकर महाकाल ने इस नगरी को अपनी साधना भूमि बनाई थी तो राजर्षि भर्तृहरी और गोपीचन्द्र ने भी यहीं साधना की थी । महर्षि सांदीपनि ने अपना आश्रम बनाने के लिये भी इसी नगरी का चयन किया था । तो श्रीकृष्ण महाराजा भी इसी नगरी के आश्रम में अध्ययन हेतु पधारे थे। महाराजा सम्राट सम्प्रति ने भी इस नगरी को अपनी राजधानी बनाया था तो सम्वत् प्रर्वतक महाराजा विक्रमादित्य ने भी इसी नगरी को अपनी राजधानी बनाई थी । लाखों वर्ष पूर्व भी इस नगरी का अस्तित्व था । महासति मासुन्दरी के पिता महाराजा प्रजापाल ने भी अपनी राजधानी हेतु इसी नगरी को पसन्द किया था तो अवन्तिसुकुमाल की साधना भूमि बनने का गौरव भी इसी नगरी को प्राप्त हुआ था ।
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महाराजा विक्रमादित्य के दरबार में यहाँ कालीदास आदि नवरत्नों ने आकर अपना स्थान जमाया था । प्राचीनकाल से यह नगरी ज्योतिष तथा संस्कृत की विद्वत्ता के लिये प्रसिद्ध रही हैं । यहाँ महान ज्योतिर्विद तथा संस्कृत के विद्वानों ने सदा ही निवास किया है ।
इस नगरी ने अनेक प्रकार की हलचलों से सराबोर युग देखा हैं । काल के अनेक आक्रमण भी सहे हैं । फिर भी यह नगरी अपनी अद से आज भी खड़ी खड़ी मुस्कुराहट बिखेरती नजर आती है ।
भारत देश की सात नगरियों में उज्जयिनी नगरी भी एक पुरानी नगरी मानी जाती है। यह नगरी क्षिप्रा नदी के किनारे पर बसी हुई है । इसके कई प्राचीन नाम हैं अवन्तिका..... पुष्पक रंडिनी... विशाला.... उज्जयिनी और उज्जैन ।
मालवप्रदेश की प्राचीन राजधानी का यह नगर दक्षिणपथ का मुख्य नगर गिना जाता था। चीनी यात्री हेव्नसांग जब मालव प्रदेश
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