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मूर्छा लक्षण करणात्, सुघटा व्याप्तिः परिग्रहत्वस्य
सग्रन्थो मूर्द्धावान् विनापि शेषसंगेभ्यः ॥ ११२ ॥ हिंसा पर्यायत्वात् सिद्धा हिंसान्तरंग संगेषु |
बहिरंगेषु तु नियतं प्रयातु हिंसैव मूत्रं ॥ ( आ० अमृतचन्द्र सूरि कृत पुरुषार्थं सिद्धि उपाय वि० सं० ६६२ )
११६ ॥
इन सब प्रमाणों से स्पष्ट है कि मूर्छा यानी ममत्व ही परिग्रह है । किसी वस्तु पर ममता होने से परिग्रह विरमण व्रत में दूषण लगता है, ममता नहीं है वहाँ परिग्रह नहीं है ममत्व के कारण ही समोरन आदि से युक्त तीर्थकर भगवान श्रपरिग्रही हैं ।
दिगम्बर आचार्य जिनेन्द्र की विभूतियाँ बताते हैं
१ इत्थं यथा तब विभूतिरभूज्जिनेन्द्र १ धर्मोपदेशन विधौ न तथा परस्य ॥
( भक्तामर स्त्रोत्र श्लो० ३३ | ३७ ) अशोक वृक्ष सिंहासन, चम्मर छत्र, पद्म ये सब तीर्थकर की निकटवर्ती विभूति हैं।
२ माणिक्य हैम रजत प्रविनिर्मितेन ।
साल त्रयेण भगवन्नभितो विभासि ॥ २६ ॥
( कल्याण मन्दिर स्तोत्र ).
३ अनीहित स्तीर्थ कृतोपि विभूतयः जयन्ति ॥
( आ० पूज्यपाद कृत समाधितन्त्रम् )
४ जलद जलद ननु मुकुट सपतफण
( पं० बनारसीदास कृत )
( पं० चम्पालाल कृत चर्चा सागर चर्चा २२८ पृ० ४३५ )
साँप की फण भी भगवान की निकटवर्ती विभूति है इन
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