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[८1 मुनि उपधि-अधिकार
दिगम्बर-पांच महाव्रत वाले साघु परिग्रह के त्यागी होते हैं । अतः उन्हें परिग्रह नहीं रखना चाहिये वस्त्र पात्र वगैरह का त्याग करना चाहिये।
जैन--श्राप परिग्रह का लक्षण क्या मानते हैं !
दिगम्बर- दिगम्बर शास्त्र में परिग्रह का स्वरूप इस प्रकार है!
१ मूर्छा परिग्रहः ( आ. श्री उमास्वाति कृत तत्वार्थ सूत्र अध्याय ७ सूत्र १७ ) २. ममत्तिं परिवज्जामि, णिम्मम ति मुवदिट्ठो ।
( भा० कुन्द कुन्द कृत भावप्राभृत गाथा ५० ) मूच्छादि जणण रहिदं, गेरहदु समणोयदिवि अप्पं ( आ. कुन्द कुन्द प्रवचन सार, चरणीनु योग चूलिकागाथा २२ ) ४. पाखडियलिंगेसु व, गिहलिंगेसु व बहुप्पयारेसु ।
कुव्वंति जे ममत्ति, तेहिं ण णादं समयसारं ॥४४३॥ टीकांश-निर्गन्थ रूप पाखंडि द्रव्य लिंगेषु कौपीन चिन्हादि गृहस्थलीगेषु बहु प्रकारेषु ये ममतां कुर्वन्ति ।
याने जो किसी भी लिंग ऊपर ममत्व रखता है वह परमार्थ को जानता नहीं हैं।
( आ० कुन्द कुन्द कृत समय प्राभूत गा० ४४३ ) ५ या मूर्छानामेयं विज्ञातव्यः परिग्रहो ह्येषः । मोहोदयादुदीर्णो, मूर्छा तु ममत्व परिणामः॥ १११ ।
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