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उक्त अर्थो से प्रसंग के अनुकुल वहां दो हो अर्थ हैं। १ अविवाहित, २ युवराज, जो विवाहित भी हो सकता है।
दिगम्बर समाज प्रथम अर्थ को मान्य रखकर उन पांचो तीर्थकरो को 'अविवाहित' मानते हैं और श्वेताम्बर समाज दूसरे अर्थको अपनाकर पाचों तीर्थंकरो को 'युवराज' मानते हैं। अब इनमें कोनसा अर्थ ठीक है ! उस का निर्णय करना चाहिये।
जैन-उक्त सब अर्थोमें ब्रह्मचर्य सूचक कोई खास पाठ नहीं है, भगवान् महावीर तीस वर्ष तक घरमें रहे उनको उक्त अर्थो के अनुसार ब्रह्मचारी सिद्ध करना सर्वथा अशक्य ही है।
श्वेताम्बर आगम तीर्थंकर की पानी ही माने जाते हैं। उनमें उन तीर्थंकरों को “कुमार" माने 'युवराज' ही माने गये हैं। कई दिगम्बर शास्त्र भी वैसाही मानते हैं सीर्फ दिगम्बर पुराणग्रंथ उन ५ तीर्थकरो को कुमार माने 'ब्रह्मचारी' ही मानते हैं।
किन्तु दिगम्बर पुराणो में तो कई बातो का आपसी मत भेद है । जैसा कि--
(१) दिगम्बरपद्मपुराण में लीखा है कि-चाली मुनि होकर मोक्ष में गया, दि० महापुराणमें लीखा है कि-बाली लक्ष्मण के हाथ से मारा गया, और मरकर नरक में गया।
(२) दिगम्बर हरिवंश पुराण में लीखा है कि वसुराजा का पिता अभिचन्द और माता वसुमती थी।
दिगम्बर पद्मपुराणमें लिखा है कि वसुराजा का पिता ययाति था, माता सुरकान्ता थी।
(३) महापुराण में लीखा है कि-रामका जन्मस्थान बनारस था, माता सुबाला थी। पद्मपुराण में लोखा है कि-रामकी जन्म भूमि अयोध्या था, माता कौशल्या थी।
(४) महापुराण में लीखा है कि-सीता, रावण की पुत्री थी। यहां भामण्डल का कोई जीक नही है। पद्मपुराण में लीखा है कि-सीता जनकराजा की पुत्री थी। भामण्डल उसका युगल आत भाई था, भामण्डल उससे व्याह करना चाहता था।
(५) महापुराणमें लीखा है कि-रामचंद्र अयोध्या का युवराज
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