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तीर्थकर भगवान को दिव्य ध्वनि और दुंदुभि ये प्रतिहार्य होते हैं।
(बोधप्रामृत गा० ३२ दर्शनप्रा० गा० ३५ टीका) (११) अहंद वक्त्र प्रसूतं ॥
( दिगम्बर पूजापाठ ) (१२) तीर्थंकर व केवली प्रश्न का उत्तर देते हैं जिसमें मुख. व्यापार होता है। (आदि पुराण २४, तथा भरत प्रश्नोत्तर)
(१३) कर्मप्रकृति ३० का उदयस्थान। नं. ३ वाले ऊपरके २४ में अंगोपांग संहनन परघात प्रशस्तविहायोगति उच्छवास व कोई स्वर जोड़ने से ३० का उदय सामान्य समुद्धात केवली के "भाषापर्याप्ति"काल में होता है। (प्र. शीतलप्रसाद का मोक्षमार्ग प्रकाशक भा० २ अ०४ पृ.१९५,२०५,२०६) (१४) पेक्खंत इव वदंता वा। ___ "स्वयं तीर्थकर भगवान् मुखसे बोलते हैं" यह 'भाव' तीर्थकर की प्रतिमाओंके मुख पर भी बना रहता है।
(भा० नेमिचन्द्रजीकृत त्रिलोकसार गा० ९८६) (१५) बचन बोलत मनो हंसत कालुष हरं । भवन बावन्न ५२ प्रतिमा नमों सुखकरं ॥६॥
(दिगम्बर ५० द्यानतरायकृत नंदीश्वग्द्वीपपूजा) जिनेन्द्रबिंब के मुख की आकृति ही बताती है कि-तीर्थकर भगवान मुखसे बोले। (१६) जगाद तत्त्वं जगतेऽथिने ऽञ्जसा ॥४॥ मोक्षमार्गमशिषन् नरामरान् ।
नापि शासनफलेषणातुरः ॥७३॥ काय-वाक्य-मनसां प्रवृत्तयो।
नामवंस्तव मुनेश्चिकिर्षया ।। नाऽसमीक्ष्य भवतः प्रवृत्तयो ।
धीर ! तावकमचिन्त्यमीहितम् ।।७४।। तव वागमृतं श्रीमत् , सर्वभाषास्वभावकम् । प्रणीयत्यमृतं यद्वत्, प्राणिनो व्यापि संसदि ॥९७॥
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