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अर्थ --सयोगिकेवली जीव द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा कितने है ? प्रवेश से एक या दो अथवा तीन और उत्कृष्टरूप से एक सौ आठ होते हैं ।॥ १३ ॥ पृ० ६५ ॥
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मूलम् - मणुसिणसि
साससम्म ट्ठिप्प हुडि
जाव | अजोगि केवल चि दव्वपमाणेण केवडिया ! संखेज्जा | सू ४६ ॥
अर्थ -- मनुष्य नियो में सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर अयोगि केवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थान में जीव द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा कितन हैं ? संख्यात हैं |॥४६॥ पृ० २६१ मूल-वेदावादेख इत्थवेदएस पमत्तसंजद पहुडि जाव अणि बादर सांपराइय पविट्ठ उवसमा खवा दव्व पमाणे केवडिया ? संखेज्जा ।। सू० १२६ ॥ अर्थ- स्त्रीओ में प्रमत्तसंगत गुणस्थान से लेकर निवृत्ति बादर सांपराय प्रविष्ट उपशमक और क्षपक गुणस्थानतक जीव द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा कितने हैं । संख्यात है ॥ १२६ ॥ पृ०
४१६ ॥
धवला टीका - पमसादीणं ओघराास संखज्ज खंडे कए एय खंडमिथिवेद प्रमत्त दाओ भवंति इत्थिवेद उवसामगा दस १० खवगा वीस २० ॥ पृ० ४१६ ॥
अर्थ--प्रमत्त संयत्त आदि गुणस्थान संबन्धी श्रोधराशिको संख्यात से खंडित करने पर एक खंड प्रमाण स्त्रीवेदी प्रमत्तसंयत आदि गुणस्थान वर्ति जीव होते हैं। स्त्रीवेदी उपशामक दश और क्षपक बीस हैं । पृ० ४१६ ।
मूलम् - बुंसय वेदेसु पमन्तसंजय पहुड़ि जाव
यिट्टि बादर सांपराइय पविड उवसमा खवा दव्व प्रमाण केवडिया ? संखेज्जा ॥ सू० १३० ॥
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टीका - इत्थवेद प्रमत्तादि रासिस्स संखेज्जदिभागमेत्तो पुंसय वेद प्रमत्तादि रासी होदि ! कुदो १ इट्टागग्ग समागण पुंसय वेदोदयेण सगिदाणे परे सम्मत्त-संजमादी मुचलं
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