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[ .] ७- शीतलप्रमादजी ने मोक्ष मार्ग प्रकाशक भा. २०४ मोहनीगकर्म के सत्तास्थान में क्रमशः षंढ या स्त्री वेद के क्षय से १२ की. पंढ या स्त्री वंद में से शेष । के क्षय से 11 की, हास्यादि ६ नौ कशय के क्षय से ५ की, और वेद के तय से ४ की सत्ता लिखी है। माने स्त्री को क्रमशः नपुंसकवेद स्त्रीवेद और पुंवेद का क्षय होता है (पृ० १७७-१७६ )
-पं० श्राशाधरजी सागार धर्माभूत के अ०८ में स्पष्ट करते हैं कि
यदौत्सर्गिक मन्यद्वा, लिंग मुक्तं जिनैः स्त्रियाः पुंवत्त दिष्यते मृत्यु काले स्वल्प कृतोपधेः।८।३६ मान-स्त्री भी जिनोपदिष्ट मुनिलिंग-दीक्षा की अधिकारिणी है। इत्यादि।
दिगम्बर चरणकरणानुयोग शास्त्रों के प्रमाण१-अज्जा गमण काले, ण अस्थि दव्यं तथैव एक्केण ।
ताहिं पुण सल्लावो, ण य कायन्वो अकज्जेण॥ १७७ तासिं पुण पुच्छाओ, इक्किस्से मय कहिज्ज एक्कोदु । गणिणी पुरओ किच्चा, जदि पुच्छड़ तो कहे दव्वं १७८
माधु और अर्जिकाओं को श्रापस २ में उक्त प्रकार से बर्नाव কনা আয।
(भा. वढेरक कृत मूलाचार अ. ४ श्लोक १७७-१७८) २-दिणपडिम वीरचरिया तियाल जोगे णियमेण । सिद्धांत रहस्सा धयणं, अहियारो णत्थी देस विरियाणं
(भा० वसुनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्ती कृत श्रावकागर ) वीरचर्या च सूर्यप्रतिमा, त्रिकाल योग धारणं नियमश्च। सिद्धान्त रहस्यादि ष्वध्ययनं, नास्ति देश विस्तानाम् ।
(भावकाचार ॥ २४९ पृ. ५०० )
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