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अर्थ — उस वैद्यको तीर्थयात्रा गया भया सुनके कमलप्रभा रानी वैद्यकी वाट देखती भई कौशाम्बी नगरीमें बहुत कालतक रही पीछे मुनिके बचनसे पुत्रकी खबर जानके यहां आई ॥ ३१३ ॥
साऽहं कमला सो एस मज्झ, पुत्तुत्तमो सिरिपालो । जाओ तुज्झ सुयाए, नाहो सवत्थ विक्खाओ ॥१४॥
अर्थ- वह कमलप्रभा मैं हूं वह यह मेरा पुत्रोत्तम श्रीपाल कुमर है जो तुम्हारी पुत्रीका भर्तार भया है और सर्वत्र लोकमें प्रसिद्ध भया है ॥ ३१४ ॥
सीहरहरायजायं, नाउं जामाउयं तओ रुप्पा । साणंद अभिनंदइ, संसइ पुन्नं च धूयाए ॥ ३९५ ॥
अर्थ - तदनंतर रुष्पसुंदरी रानी सिंहरथ राजाके पुत्रको जमाई जानके आनंदसहित जैसा होय वैसा पुत्रीके पुण्यकी अनुमोदना करे याने पुत्रीके पुण्यकी प्रशंसा करे ॥ ३१५ ॥
गंतूण गिहं रुप्पा, कहेइ तं भायपुन्नपालस्स । सोऽवि सहरिसो कुमरं, सकुटुंबं नेइ नियगेहं ॥ ३९६ ॥
अर्थ —तदनंतर रुप्पसुंदरी रानी अपने घर जाके अपने भाई पुण्यपालके आगे वह वृत्तान्त कहे तब पुण्यपाल भी हर्षसहित मातादि कुटुंब सहित कुमरको अपने घर लावे ॥ ३१६ ॥
अप्पेइ वरावासं, पूरइ धणधन्नकंचणाईयं । तत्थऽच्छइ सिरिपालो, दोगंदुकदेवलीलाए ॥ ३१७ ॥
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