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श्रीपालचरितम्
॥४०॥
जिव, काहने भाइयोंकरके आश्वासन
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तं रुयमाणि दुटुं, पेडयपुरिसा भणंति करुणाए। भद्दे कहेसु अम्हं, काऽसि तुमं कीस वीहेसि ॥३०१॥ भाषाटीका| अर्थ-तब कोढ़ियोंके पेड़ेका मनुष्यो ने उस रानीको रोती भई देखके करुणासे बोले हे भद्रे तैं हमसे कह तैं कौन है 3
सहितम्. और कैसे डरती है ॥ ३०१॥ तीए नियबंधूणिव, कहिओ सबोवि निययवुत्तंतो। तेहिं च सा सभइणिव, सम्ममासासिया एवं ॥२॥ | अर्थ-बादमें उस रानीने अपने भाइयोंके जैसा सर्व अपना वृतान्त कहा उन्होंसे, और उन्होंने उस रानीको अपनी बहिनके जैसी समझके और वक्ष्यमाण प्रकार करके आश्वसना दिया कैसे सो कहते हैं ॥३०२॥ मा कस्सवि कुणसु भयं, अम्हे सत्वे सहोयरा तुज्झ । एआइ वेसरीए, आरूढा चलसु वीसत्था ॥३०॥ __अर्थ-हे भगिनी तेरेको किसीकाभी भय नहीं करना जिस कारणसे हम सब तेरे भाई हैं इस खचरनीपर बैठी हुई विश्वास युक्त सुखसे चलो ॥३०३॥ तत्तो जा सा वरवेसरीए, चडिया पडेण पिहियंगी। पेडयमज्झमि ठिया, नियपुत्तजुया सुहं वयइ ॥४॥ अर्थ-तदनंतर कमलप्रभा रानी प्रधान वेशरणी नाम खचरनीपर बैठी भई और वस्त्रसे जिसका शरीर ढका है और 8
॥४०॥ दाकोढ़ियोंके पेडेके मध्यमें रही भई अपने पुत्र सहित सुखसे चलती है ॥ ३०४॥
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