________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अर्थ-हे सुंदरि तुम धन्य हो जिसकी कुक्षिमें ऐसा स्त्रीरत्न उत्पन्न भया है कैसा सो कहते हैं असदृश अनुपम उपमारहित जो ब्रह्मचर्य उसके प्रभावसे चिंतामणि रत्नके तुल्य है ॥२८॥ हरिसवसेणं सा रुप्प-सुंदरी पुच्छए किमयंति।मयणावि सुविहिनिउणा, पभणइ एयारिसंवयणं ॥२८॥ | अर्थ-ऐसा वचन सुनके रुप्पसुंदरी रानी हर्षके वशसे कुमरकी माताको ऐसा पूछा यह क्या वृत्तान्त है तब द्रविधिको जाननेवाली मदनसुंदरी इस प्रकारसे बोली ॥ २८१॥
चेइयहरंमि वत्ता,-लावंमि कए निसीहियाभंगो। होइ तओ मह गेहे, वच्चह साहेमिमं सवं ॥२८२॥ है अर्थ-क्या बोली सो कहते हैं चैत्यघर जिनमंदिरमें वार्तालाप करनेसे निसहीका भंग होवे है तिसकारणसे आप |मेरे घर चलो जिससे मैं यह सर्व वृत्तान्त कहूं ॥ २८२ ।।
तत्तो गंतूण गिह, मयणाए साहिओ समग्गोवि । सिरिसिद्धचक्कमाहप्प,-संजुओ निययवुत्तंतो॥२८३॥ | अर्थ-बादमें घर जाके मदनसुंदरीने सब अपना वृत्तान्त कहा कैसा है वृतान्त श्री सिद्धचक्रका जो माहात्म्य उस करके सहित है ॥ २८३ ॥ तं सोऊणं तुट्ठा, रुप्पा पुच्छेइ कुमरजणणिपि। सुप्पत्तिं तुह नंदणस्स, सहि ? सोउमिच्छामि ॥२८॥
For Private and Personal Use Only