________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatrth.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir
SAUSAASAASA
अर्थ-वे तीनों जणा अन्य दिनमें श्री तीर्थकरकी अंगपूजा और अग्रपूजा करके भावपूजा उपयोगसहित करते का अर्थात् देववंदना करते भए उस वक्त क्या भया सो कहते हैं ॥ २६३ ॥
इओय धूयादुहेण सा, रूप्पसुंदरी रूसिऊण सह रन्ना। नियभायपुण्णपालस्स, मंदिरे अच्छइ ससोया ॥ द्र अर्थ-इधरसे पुत्रीके दुःखसे रूप्पसुंदरी रानी राजाके साथ रूसके अर्थात् नाराज होके अपना भाई पुन्यपालके है घरमें जाके शोकसहित रहीं ॥ २६४ ॥
वीसारिऊण सोयं, सणियं सणियं जिणुत्तवयणेहिं । जग्गियचित्तविवेया, समागया चेइयहरंमि २६५/ ___ अर्थ-वह रूप्पसुंदरी रानी धीरे २ शोकको दूर करके तीर्थकरके कहे हुए बचनोंसे जाग्रत हुआ है चित्तमें निर्मल विवेक जिसके ऐसी जिनमंदिर आई ॥ २६५ ॥
जा पिक्खइ सा पुरओ, तं कुमरं देववंदणापउणं । निउणं निरुवमरूवं, पच्चक्खं सुरकुमारव(रंव) ॥२६॥ है अर्थ-वह रूपसुंदरी रानी जितने आगे उस कुमरको देखे कैसा है कुमर देववंदनामें लगा है मन जिसका और
विचक्षण उपमारहित रूप आकृति सौंदर्य जिसका और प्रत्यक्ष देवकुमारके सदृश ऐसा ॥ २६६ ॥ 18| तप्पुट्ठीइ ठियाओ, जणणी जायाउ ताव तस्सेव । दट्ट्ण रुप्पसुंदरी, राणी चिंतेइ चित्तंमि ॥२६७॥
For Private and Personal Use Only