________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्रीपाल - चरितम्
॥ २८ ॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भद्र २ कपिल ३ पिंगल नामका जिसके ऐसा इहां १६ विद्या देवी ओम् ह्रीँ रोहिण्यै नमः इत्यादि यन्त्रके चौतर्फ लिखे तथा शासन देव ॥ २०५ ॥
| दिसिवाल खित्तवालेहिं, सेवियं धरणिमंडलपइटुं । पूयंताण नराणं, नूणं पूरेइ मणइटुं ॥ २०६ ॥ अर्थ-यन्त्र के दक्षिण दिशिमें लिखे शासन देवी यन्त्रके वाम दिशिमें लिखे और कलसाकार चक्र की पड़घीके नीचे ओम् आदित्यायनमः इत्यादि नव ग्रहों का नाम लिखे कंठमें नवनिधान ओम् नैसर्पकाय नमः इत्यादि लिखे तथा चार दिशामें क्रमसे कुमुद १ अंजन २ वामन ३ पुष्पदंत ४ लिखे तथा माणभद्रादि ४ वीर लिखे ५ दिक्पाल १० इन्द्र १ अग्नि २ यम ३ नैऋत ४ वरुण ५ वायु ६ कुबेर ७ ईशान ८ ब्रह्म ९ नाग १० इन्हों करके और क्षेत्रपाल करके प्रसिद्ध सेवित और पृथ्वीपीठपर प्रतिष्ठ रहा हुआ दश दिग्पालोंमें ८ दिग्पालोंको पूर्वादि क्रमसे लिखना ओम् इन्द्रायनमः इत्यादि ऊर्ध्व दिशामें ओम् ब्रह्मणेनमः, अधो दिशामें ओम् नागायनमः, अपने जीवने तरफमें यन्त्रके कोने में ओम् क्षेत्रपालायनमः लिखे इसके लिखनेमें सम्यविधिः आम्नायजाननेवालों के मुखसे अथवा लिखित यन्त्रसे
जानना ॥ २०६ ॥
एयं च सिद्धचक्कं कहियं विज्जाणुवायपरमत्थं । नाएण जेण सहसा, सिज्यंति महंतसिद्धीओ ॥२०७॥ अर्थ - ये सिद्धचक्र विद्यानुवादनामक दशम पूर्वका परमार्थरूप रहस्यभूत है जिसके जाननेसे अकस्मात् शीघ्र अणिमादि बड़ी सिद्धियों सिद्ध होवे है ॥ २०७ ॥
For Private and Personal Use Only
भाषाटीकासहितम्.
॥ २८ ॥