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श्रीपाल- सामिय! सवं मह आइसेसु, किंचेरिसं पुणो वयणं। नो भणियत्वं जं दूह, वेइ मह माणसं एयं ॥६७॥ भाषाटीकाचरितम् 31 अर्थ-हे स्वामिन् मेरेको और सब कार्यकी आज्ञा करो किंतु ऐसा बचन और नहीं कहना कैसे सो कहते हैं जिससहितम्. ॥२२॥
कारणसे यह बचन मेरे मनको दुःखावे है ॥ ६७॥ अन्नं च पढमं महिलाजम्म, केरिसयं तंपि होइ जइलोए। सीलविहणं नृणं, ताजाणह कंजियं कुहियं ६८ | अर्थ-औरभी सुनो पहले स्त्रीका जन्म अशुद्धही है वह स्त्रीका जन्म जो लोकमें ब्रह्मचर्य रहित होवे तब निश्चय कुथी भई कांजीके सदृश अत्यन्त अशुद्ध आप जानो ॥ ६८॥ सीलंचिय महिलाणं, विभूसणं सीलमेव सबस्सं। सीलं जीवियसरिसं, सीलाओन सुंदरंकिंपि॥६९॥ | अर्थ-जिस कारण स्त्रियोंके शीलही आभरण है और ब्रह्मचर्यही सर्वस्व सर्व सार है और स्त्रियों के शील ब्रह्मच
र्यजीवितव्यके सरीखा है स्त्रियोंके शीलसे अधिक कुछभी सुंदर नहीं है ॥ ६९॥ है ता सामिय! आमरणं, मह सरणं तंसि चेव नो अन्नो।इय निच्छियं वियाणह, अवरं जं होइ तं होउ ७० PI अर्थ-इस कारणसे हे स्वामिन् मरणपर्यत मेरे आपहीका शरणा है और कोई शरणा नहीं है यह निश्चय युक्त |8| आप जानो और जो होनेवाला है सो होवो ॥७॥
॥२२॥ एवं तीए अइनिच्चलाइ, दढसत्तपिरकणनिमितं । सहसा सहस्सकिरणो, उदयाचल चूलियं पत्तो ॥७॥
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