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नाणंपि दंसणंपि य, संपुन्ना फलं फलंति जीवाणं । जेणंचिय परिकरिया, तं चारित्तंजए जयइ॥१२८२॥ __ अर्थ-ज्ञान और दर्शन जिस चारित्रसे सहित ही जीवोंको संपूर्ण फल देते हैं वह चारित्र जगत् में जैवन्ता होवो ॥ १२८२॥ जं च जईण जहुत्तर,-फलं सुसामाइयाइ पंचविहं। सुपसिद्धं जिणसमए, तं चारित्तं जए जयइ ॥१२८३॥ । अर्थ-और जो चारित्र जैन सिद्धान्तमें साधुओंके शोभन सामायकादि पांच प्रकारका यथोत्तर उत्तर २ अधिक |फल जिसका ऐसा वर्ते है वह चारित्र जगत् में जैवन्ता होवो ॥ १२८३ ॥
जं पडिवन्नं परिपालियं च, सम्मं परूवियं दिन्नं । अन्नसिं च जिणेहिवि, तं चारित्तं जए जयइ॥१२८४॥ | अर्थ-तीर्थकरोंने जिस चारित्रको अंगीकार किया और पाला और सम्यक् प्ररूपणा करी उपदेश किया औरोंको दिया वह चारित्र जगत्में जयवन्तो होवो ॥ १२८४ ॥ छक्खंडाणमडखं, रजसिरिं चइय चक्कवडीहिं । जं सम्म पडिवन्नं, तं चारित्तं जए जयइ ॥ १२८५॥ ___अर्थ-चक्रवर्तियोंने अखंड छ खंडकी राज्य लक्ष्मीका त्याग करके जो चारित्र अच्छी तरहसे अंगीकार किया वह चारित्र जगत्में जयवन्तो होवो ॥ १२८५ ॥ जंपडिवन्ना दमगाइणो वि, जीवा हवंति तियलोए । सयलजणपूयणिज्जा, तं चारित्तंजए जयइ॥१२८६॥
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