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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir सेसतिभवेहि मणुएहि,जेहिं विहियारिहाइ ठाणेहि।अजिजइ जिणगुत्तं, ते अरिहंते पणिवयामि ॥१२१८॥ ___ अर्थ-बाकी रहे हैं तीनभवजिन्होंके ऐसे मनुष्यभवमें रहे हुए सेवा है अहंदादि वीसथानिक जिन्होंने ऐसे तीर्थकरनाम कर्म उपार्जन करते हैं उन अरिहंतो को मैं नमस्कार करूं॥ १२१८ ॥ जे एगभवंतरिया रायकुले उत्तमे अवयरंति । महसुमिणसूइयगुणा, ते अरिहंते पणिवयामि ॥१२१९॥ 8. अर्थ-जिके एक भवके अंतरमें उत्तम राजकुलमें अवतरे है अर्थात् तीर्थकरके भवमें १४ महा स्वप्नों करके सूचित किया है गुण जिन्होंने ऐसे उन अरिहंतोंको मैं नमस्कार करूं ॥ १२१९ ॥ जेसिं जम्ममि महिम, दिसाकुमारीओसुरवरिंदाय । कुवंति पहिट्ठमणा, ते अरिहंते पणिवयामि ॥१२२०॥ ___ अर्थ-जिन्होंका जन्म होनेसे महिमा ५६ दिग् कुमारियों आके सूतिकर्म करे हैं और हर्षितचित्त जिन्होंका ऐसे ६६४ देवेन्द्र मेरुशिखरपर लेजाके जन्ममहोत्सव करें हैं उन अरिहन्तोंको में नमस्कार करूं हूं ॥ १२२० । आजम्मंपि हु जेसि, देहे चत्तारि अइसया इंति । लोगच्छेरयभूया, ते अरिहंते पणिवयामि ॥१२२१॥ ___ अर्थ-निश्चय जिन्होंके शरीरमें जन्मसे लेके आश्चर्यभूत चार अतिशय होवे है अद्भुतरूप सुगन्धयुक्त निश्वास वायु अहार निहार अदृश्य और श्वेतमांस रुधिर जिन्होंका ऐसे अरिहंतोंको में नमस्कार करूं ॥ १२२१ ॥ श्रीपा.च.२६ लाजे तिहनाणसमग्गा, खीणं नाऊण भोगफलकम्मं । पडिवज्जति चरितं, ते अरिहंते पणिवयामि ॥१२२२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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