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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ तथा आठ ८ जयादि स्थानोमें नारंगी वगैरहके फल चढावे और सिद्धचक्रके अधिष्ठायक विमलेश्वर १ चक्रेश्वरी २ क्षेत्रपालादि ४ पदोमें ४ कूष्माण्डके फल चढावे ॥ ११९७ ॥ आसन्नसेवयाणं देवीणं, वारस य वयंगाई। विज्झसुरिजक्खजक्खिणि, चउसट्टिपएसु प्रगाइं ॥११९८॥ ___ अर्थ तथा निकट सेवा करनेवाली १२ बारहदेवी उन्होंको वयंग फल विशेष चढावे चौथा अधिष्ठायक और बारह देवियोंका नाम वैसा सम्प्रदाय न होनेसे नहीं जाना जाय है तथा १६ सोलह विद्यादेवी २४ यक्ष शासनदेव २४ चौवीस शासनदेवी यह चौसठपदोंमें सुपारी चढ़ावे ॥ ११९८ ॥ पीयवलीकूडाइं, चत्तारि दुवारपालगपएसु । कसिणबलीकूडाई, चउवीरपएसु ठवियाइं॥ ११९९ ॥ __ अर्थ-चार द्वारपाल कुमुदादिपदोंमें चार पीतवर्ण पक्वान्नादिकके पुंज स्थापे तथा चार ४ मणिभद्रादि वीरपदोंमें काले वर्णका पक्वान्नादिकका ढिगला स्थापा ॥ ११९९ ॥ नवनिहिपएसु कंचण, कलसाइं विचित्तरयणपुन्नाइ। गहदिसिवालपएसु य, फलफुल्लाइं सवन्नाई १२०० __ अर्थ नव निधानोंमें नाना प्रकारके रत्नोंसे भरेहुए सोनेके कलश स्थापे तथा नवग्रह और दश दिक्पाल पदोंमें अपने २ वर्णके फल पुष्पादि चढ़ाए ॥ १२००॥ दिइच्चाइगरुयवित्थर, सहियं मंडाविऊणमुजमणं । ण्हवणूसवं नरिंदो, कारावइ वित्थरविहीए ॥१२०१॥18| यह चासटपादायु न होने से नहीं जानदेवी उन्होंको वयंग 55AAAAC For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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