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युक्त २५ पन्नेकी मणिसहित चारअनुयोगकी अपेक्षा चारइन्द्रनीलमणि पच्चीसगुणकी अपेक्षा पच्चीसमरकतमणि सहित गोला चढाया ॥११८९ ॥ साहपए पुण सामे, समयमयं पंचरायपट्टकं । सगवीसरिट्ठमणिं, भत्तीए गोलयं ठवियं ॥ ११९० ॥
अर्थ-श्यामवर्णसे व्यवस्थापित साधुपदमें कस्तूरीका विलेपन सहित पांचराजपट्ट वेराट रत्नो करके शोभा जिसकी अथवा पांच राजपट्ट उत्संगमें अर्थात् मध्यमें जिसके और सत्ताईस नीलम रत्न विशेष जिसमें ऐसा गोला भक्तिसे चढाया पांच महाव्रतकी अपेक्षा पांच राजपट्ट और सत्ताईस गुणकी अपेक्षा उतनेही नीलम चढावे ॥११९० ॥ ६ सेसेसु सियपएसु, चंदणसियगोलए ठवइ राया। सगसट्ठिगवन्नसयरि,-पन्नमुत्ताहलसमेए ॥११९१॥ | अर्थ-अवशेष दर्शनादि चारपदोंमें श्रीपालराजाने चंदनका विलेपनसहित धवला गोला चढ़ाया कैसा गोला ६७ सड़सठ, ५१ इक्कावन ७० सित्तर ५० पचास मोतियों करके सहित यहां यह भावहै दर्शन पदमें-४ श्रद्धान ३ लिङ्ग इत्यादि ६७ सडसठ भेद है ज्ञानपदका स्पर्शनइन्द्रियव्यंजनावग्रहादि ५१ इक्कावन भेद है चारित्रका व्रत ५ श्रमणधर्म १० संयम १७ इत्यादि ७० भेद है तप पदका इत्वरअनशनादि ५० भेद है इतनाही मोती चढ़ावे ॥ ११९१ ॥
अन्नं च नवपयाणं, उद्देसेणं नरेसरे तत्थ । तत्तबन्नाई सुमेरु, मालाचीराइं मंडेइं ॥ ११९२ ॥ 8 अर्थ-और राजा श्रीपाल नवपदोंको उद्देश करके उस पीठपर उस वर्णका सुमेरु माला, वस्त्र वगैरह चढावे ॥११९२॥
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