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श्रीपाल - चरितम्
॥ १४४ ॥
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तं सोऊणं अइगुरुयं, भत्तिसत्तीहिं संजुओ राया। अरिहंताइपयाणं, करेइ आराहणं एवं ॥ १९६९ ॥ अर्थ- वह मदन सुंदरीका बचन सुनके अत्यन्त भक्ति शक्ति सहित राजा वक्ष्यमाण प्रकारसे अर्हदादि पदोंका आराधन करे ।। ११६९ ॥
नव चेईहर पडिमा जिन्नुद्धाराइ विहिविहाणेणं । नाणाविहणूयाहिं, अरिहंताराहणं कुणइ ॥ ११७० ॥
अर्थ — सो कहते हैं नवजिनमंदिर नवप्रतिमा नवजीर्णोद्धार इत्यादिक विधिसे करवाके अनेकप्रकारकी पूजा करके अर्हत पदकी आराधना करे ।। ११७० ॥
सिद्धाणवि पडिमाणं, कारावणपूयणापणामे हिं । तग्गयमणझाणेणं, सिद्धपयाराहणं कुणइ ॥ ११७१ ॥ अर्थ–सिद्धोंकी प्रतिमाका कराना और पूजा करना नमस्कार करना और सिद्धोंमें मन जिसका ऐसा ध्यान करने कर सिद्धपदका आराधन करे ।। ११७१ ॥
भत्तिबहुमाणवंदण, - वेयावच्चाइकज्जमुज्जुत्तो । सुस्सूसणविहिनिउणो, आयरियाराहणं कुणइ ॥ ११७२ ॥
अर्थ-भक्ति मनमें निर्भरप्रीति बहुमान बाह्यप्रतिपत्ति वंदना वेयावच्च इत्यादि कार्योंमें उद्यमवान तथा सेवाकर - नेका विधिमें निपुण ऐसा राजा आचार्यपदकी आराधना करे ।। ११७२ ॥ |ठाणासणवसणाई, पढतपाढंतयाण पूरंतो । दुविहभत्तिं कुणतो, उवझायाराहणं कुणइ ॥ ११७३ ॥
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भाषाटीकासहितम्
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