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श्रीपालचरितम् ॥१३६॥
भाषाटीका| सहितम्.
-SAMACASEAR
अर्थ-इस कारणसे अनन्तरोक्त नवपदोंका समाहार नवपदी कहा जावे उसको सर्व भव्य प्राणियोंको तत्वभूत ६ समझना और ध्यान करना ॥१०९९ ॥
एयं नवपयं भवा, झायंता सुद्धमाणसा । अप्पणो बेव अप्पंमि, सक्खं पिक्खंति अप्पयं ॥ ११००॥ ___ अर्थ-ए नवपदीको जानके शुद्ध मनसे ध्याते हुए मनुष्य अपने आत्माको साक्षात् नवपदमई देखते हैं ॥११००॥ 8 अप्पंमि पिक्खिए जं च, क्खणे खिजइ कम्मयं । न तं तवेण तिवेण, जम्मकोडीहिं खिज्जए ॥११०१॥ __ अर्थ-आत्मा नवपदमई देखनेसे क्षणमात्रसे जो कर्म क्षय होवे वह कर्म तीव्रतपसे करोड़ जन्मसेभी नहीं क्षय होवे ११०१
ता तुज्झ भो महाभागा, नाऊणं तत्तमुत्तमं । सम्मं झाएह जं सिग्धं, पावेहाणंदसंपयं ॥ ११०२॥ PI अर्थ-तिस कारणसे अहो महाभाग्यवंतो आप यह उत्तम तत्व जानके अच्छी तरहसे जैसा बने वैसा ध्यावो जिस
कारणसे शीघ्र आनंद सम्पदा परम आल्हादरूप पावो ॥११०२॥
एवं सो मुणिराओ, काऊणं देसणं ठिओ जाव, ताव सिरिपालराया, विणयपरो जंपए एवं ॥११०३॥ । अर्थ-वह अजितसेन मुनिराज इस प्रकारसे देशना देके जितने रहे उतने श्रीपालराजा विनयमें तत्पर होकर इस
प्रकारसे कहे ॥ ११०३ ॥ है नाणमहोयहि भयवं, केण कुकम्मेण तारिसोरोगो। बालत्ते मह जाओ केण सुकम्मेण समिओ य॥११०४॥
RAREKARE
ABANKA
॥१३६ ॥
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