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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kcbalirth.org श्रीपालचरितम् ॥१३४॥ भाषाटीकासहितम्. अर्थ-सिद्धान्त सुननेसेभी तत्व परबुद्धि अतिशय दुर्लभ है जिसकारण लोक शृंगारहास्यादिककी कथा सावधान होके एकाग्र चित्तसे सुनते हुए बहुतसे दीखते हैं ॥ १०८३ ॥ उवइटेवि तत्तंमि, सद्धा अच्चंतदुल्लहा । जं तत्तरुइणो जीवा, दीसंति विरला जए ॥ १०८४ ॥ ___ अर्थ-गुरूने तत्व कहां थकां आस्तिक्य श्रद्धा अत्यन्त दुर्लभ है जिस कारणसे तीर्थकरके कहे हुए पदार्थोपर रुचि है जिन्होंकी ऐसे तत्व रुचि जीव विरला दीखते हैं । १०८४ ॥ जायाए तत्तसद्धाए, तत्तबोहो सुदुल्लहो । जं आसन्नसिवा केई, तत्तं वुझंति जंतुणो ॥ १०८५॥ ___ अर्थ-तत्व प्रतीति होनेसेभी तत्वका बोध होना दुर्लभ है जिस कारणसे जिन्होंके नजदीक मोक्ष जाना है ऐसे जीवोंको तत्वका बोध होवे है औरोंको नहीं ॥ १०८५ ॥ है तत्तं दसविहो धम्मो, खंती मद्दवमजवं । मुत्तीतवो दयासचं, सोयं बंभमकिंचणं ॥ १०८६ ॥ । अर्थ-तत्व क्या है सो कहते हैं तत्व दश प्रकारका यतिधर्म सो कहते है क्षमा १ मार्दव २ आर्जव ३ मुक्ति ४ तप ५ दया ६ सत्य ७ शौच ८ ब्रह्मचर्य ९ अकिंचन १० ॥१०८६ ॥ खंतीनाममकोहत्तं, महवं माणवजणं । अजवं सरलो भावो, मुत्ती निग्गंथया दुहा ॥ १०८७ ॥ ॥१३४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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