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श्रीपालचरितम्
॥१३१॥
सरीखा स्नेहणा और मंगणां सरीखा दृष्टिणा मंग रंजन द्रव्य विशेष उसका राग दुस्त्यज होवे है ॥ १०५७ ॥ 18 भाषाटीकादोसोदुटु-गइंदो,वसीकओजेणलीलमित्तेणं। उवसमसिणि निउणेणं, तस्स महामुणिवइ नमो ते१०५० सहितम्. __ अर्थ-और जिस मुनिने लीला मात्रसे द्वेषरूप दुष्ट हाथीको बसकिया उस महामुनिको नमस्कार होवो कैसा है वह महामुनि उपशमरूप अंकुशके प्रयोगमें निपुणा जाननेवाला ॥ १०५८ ॥ मोहो महल्ल-मल्लोवि, पीडिओ ताडिऊण जेणेसो, वेरग्ग-मुग्ग-रेणं, तस्स महामुणिवइ नमो ते १०५९ ___ अर्थ-जिस मुनिने यह मोहरूप महा मल्लकोमी बैराग्य मुद्गरसे ताड़के पीडित किया उस महामुनिको नम-टू |स्कार होवे ॥ १०५९॥
एष अंतर-रिउणो, दुजेया सयलसुरवरिंदोहिं । जेण जिया लीलाए, तस्स महामुणिवइ नमो ते १०६० | अर्थ-सम्पूर्ण देवेन्द्रो करके दुर्जेय ये क्रोधादिक अंतर शत्रु जिस महामुनिने लीलामात्रसे जीता उस महामुनिको 81 नमस्कार होवो ॥ १०६०॥ पुर्वपि तुमं पुज्जो, आसिममंजेण तायभायासि । संपइ पुणो मुणीसर, जाओ-पुज्जो तिलकस्स १०६१| 1 अर्थ-पहलेभी आप मेरे पूज्य थे जिसकारणसे मेरे पिताके आप भाई हैं इस वक्तमें मुनीश्वर होनेसे तीन जग-13/
॥१३१॥ तके पूज्य भए हो ॥१०६१ ॥
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