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मिलिऊण तक्खणं चिय, अग्गिमसेणाइ उब्भडा सुहडा।
मग्गणमसिक्खियंपि ह कुणंति पढमासिघायाणं ॥ १०३१॥ अर्थ-तब आगेकी सेनाका सुभट उद्भट तत्कालही परस्पर मिलके पहले खड्ग प्रहारोंकी मांगना नहीं सीखे हैं। तौभी याचना करें ॥ १०३१॥ खग्गाखग्गि सरासरि, कुंताकुंतिप्पयंडदंडं च । झुझंता ते सुहडा, संजाया एगमेगं च ॥ १०३२॥ | अर्थ-खड्गवाले खड्गवालोंसे युद्धकरें बाणवाले बाणवालोंसे युद्धकरें भालावाले भालावालोंसे युद्धकरें दंडवाले दंडवालोंसे युद्धकरें ऐसे युद्ध करते २ सुभट दोनों सेनाके इकट्ठे होगए ॥१०३२॥
कस्सवि भडस्स सीसं, खग्गच्छिन्नं च वालविकरालं। रविणोविराहसंकं, करेइ गयणंमि उच्छलियं १०३३ हूँ| अर्थ-किसी सुभटका मस्तक शत्रुने खड्गसे काटा वालोंसे बिकराल आकाशमें उछला हुआ सूर्यकोभी राहु ग्रहकी है
शंका उत्पन्न करे अर्थात् जैसा ग्रहण होगया हो वैसा मालूम होवे ॥१०३३॥ कोवि भडो सिल्लेणं, गयणे उल्लालिओ महल्लेणं । दीसह सुरंगणाहिं, सग्गमियंतो सदेहव्व ॥१०३४॥
अर्थ-कोईक सुभट बर्थी शस्त्रसे आकाशमें उछालागया ऐसा देवाङ्गनाओं सहित शरीर जिसका ऐसा स्वर्गसे आता होवे वैसा देखनेमें आवे ॥ १०३४॥
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