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श्रीपालचरितम्
सहितम्.
॥१२१॥
RAECRECORRIGANGANAGAR
तइया नियगरुयत्तं, मयणाइ बिडवणं च दट्टणं। जो य मए मुद्धाए, अखब्बगब्बो को आसि॥९७५॥
भाषाटीकाअर्थ-तब पाणिग्रहणके अवसरमें अपना महत्त्व और मदनसुंदरीकी विडंबना देखके मैं मूर्खनीने अखर्व गर्वनाम महान् अहंकार किया था ॥ ९७५॥ तंभंजिऊण मयणा, पइणो नरनाहनमियचलणस्स । जेणाहं दासत्तं, कराविया तं जयइ कम्मं ॥९७६॥ | अर्थ-वह गर्बका चूर्ण करके नरेन्द्रों करके नमस्कार किया है चरण कमलोंमें जिसके वह मदनसुंदरीके भर्तारका ६ दासपना जिस कर्मने मेरे पास कराया वह कर्म जयति सर्वोत्कृष्ट वर्ते है ॥ ९७६ ॥ इकच्चिय मह भइणी, मयणा धन्नाणधुरि लहइ लीहं, जीए निम्मलसीलं, फलियं एयारिसफलेहि ९७७ __ अर्थ-धन्य स्त्रियोंके आदिमें एक मेरी बहन मदनसुंदरीही रेखा पावे है जिसका निर्मलशील ऐसे फलोंसे फला ॥९७७॥ कयपावाण जियाणं, मज्झे पढमा अहं न संदेहो । कुलसीलवजियाए, चरियं एयारिसं जीए ॥९७८॥ ___ अर्थ-किया पाप जिन्होंने ऐसे जीवोमें पहली मैं हूं जहां पापियोंकी गिनती होवे है वहां पहिली रेखा मैं पाऊं हूं इसमें सन्देह नहीं है कैसे सो कहते हैं कुलसीलवर्जित उत्तम कुलाचाररहितका ऐसा चरित वर्ते है ॥ ९७८ ॥
॥१२१॥ मयणाए जिणधम्मो, फलिओ कप्पदुमुव सुफलेहि। मह पुण मिच्छाधम्मो, जाओ विसपायवसरिच्छो
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