________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्रीपाल - चरितम्
॥ १२० ॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुमुहूत्तकए बाहिं, ठिओ य जामाउओ स तुह्माणं । सुहडाणं परिवारो, बहुओ य गओ सगेहेसु ॥ ९६६ ॥ अर्थ-वह आपका जमाई शुभ मुहूर्त के लिए नगरीके बाहिर रहा सुभटोंका परिवार बहुतसा नगरीमें अपने २ घर गया ।। ९६६ ॥
रयणीए पुरबाहिं, ठियाण अह्माण निब्भयमणाणं । हणि मारिति करिती, पडिया एगा महाघाडी ॥९६७॥
अर्थ - रात्रिमें नगरके बाहिर रहे हुए निर्भय मन जिन्होंका ऐसा हमारे पर मार मार ध्वनि करती भई एक बड़ी धाड़ पड़ी अर्थात् लूटने वाले आए ॥ ९६७ ॥
तो सहसा सो नट्ठो, तुझं जामाउओ ममं मुत्तुं । धाडीभडेहिं ताए, सिरीइ सहिया अहं गहिया ९६८
अर्थ - तदनंतर वह आपका जमाई मेरेको छोडके अकस्मात भागगया मेरेको आपकी दीभई लक्ष्मी सहित धाडके सुभटोंने पकडी ॥ ९६८ ॥
नीया य तेहिं नेपाल, -मंडले विक्किया य मुल्लेणं । गहिया य सत्थवइणा, एगेणं रिद्धिमंतेणं ॥ ९६९ ॥ अर्थ - और उन धाडके सुभटोंने नेपाल देशमें ले जाके कीमतसे वेची एक ऋद्धिवान सार्थ वाणीएने ग्रहण करी ॥ ९६९ ॥ तेणावि ससत्थेणं, नेऊणं सह बब्बरंमि कूलंमि । महकालरायनयरे, हट्टे धरिऊण विक्कणिया ॥ ९७० ॥
For Private and Personal Use Only
भाषाटीकासहितम्.
॥ १२० ॥