________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatrth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रीपाल-18 अन्नं च मज्झ वाम, नयणं वामो पओहरो चेव । तह फंदइजह मन्ने, अजेव मिलेइ तुह पुत्तो॥९३९॥ दूभापाटीका
|सहितम्. चरितम्
ता अर्थ-औरभी मेरा डावा नेत्र और डावा स्तन वैसा फरके हैं जैसे आजही आपका पुत्र मिलैगें ऐसा मानती हूं ॥९३९॥ ॥११७॥
हैतं सोउणं कमलप्पभावि, आणंदिया भणइ जाव । वच्छे सुलक्खणा तुह,-जीहा एयं हवउ एवं ॥९४०॥ PI अर्थ-वह वचन सुनके कमलप्रभामाता आणंदसहित चित्त जिसका ऐसी जितने कहे हे वत्से तेरी जिव्हा सुल
क्षणी है यह इसी तरह होवो ॥ ९४०॥ ताव सिरिपालराया, पियाइ धम्ममि निच्चलमणाए । नाऊण सञ्चवयणं, बारं बारंति जंपेइ॥९४१॥ । अर्थ-उतने श्रीपालराजा धर्ममें निश्चल मन जिसका ऐसी अपनी स्त्रीका सत्यवचन जानके द्वारं २ दरवजा खोलो| दरवज्जा खोलो ऐसा कहे ॥ ९४१॥ कलमप्पभा पयंपइ, नूणमिणं मज्झ पुत्तवयणंति। मयणावि भणइ जिणमय, वयणाई किमन्नहा हुंति॥ ___ अर्थ-तब कमलप्रभा राजाकी माता कहे निश्चय यह मेरे पुत्रके वचन हैं तब मदनसुंदरीभी कहे जैनधर्मकी सेवा करनेवालोंका वचन क्या झूठा होवे है अपितु नहीं होवे है ॥ ९४२॥ उग्घाडियं दुवारं, सिरिपालो नमइ जणणि पयजुयलंदइयं चविणयपउणं, संभासइपरमपिम्मेणं ९४३
MONSORESCUSS
ARCASE
॥११७॥
CACAM
For Private and Personal Use Only