________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatrth.org
Acharya Shri Kailassagarsuti Gyanmandir
श्रीपालचरितम्
| सहितम्.
॥१०॥
COMSABSCANCHORE
अर्थ-तन्त्री वगैरह दोषोंको दिखाके अच्छी तरहसे स्वरावट मिलाके जितने कुमर वीणा बजावे उतने सब लोक सोते होंवें वैसा अचेतन भया ॥ ७९४ ॥
कस्सवि मुद्दारयणं, कस्सवि कडयं च कुंडलं मउडं । कस्सावि उत्तरीयं, गहिऊण कओय उक्करडो ७९५ हा अर्थ-तब कुमरने किसीका मुद्रारत्न किसीका कड़ा किसीका कुंडल किसीका दुपटा लेके ऊंचा ढिगला किया ॥७९५॥
अह जग्गियंमि लोए, अच्छरियं पासिऊण सा कुमरी। धन्ना पुन्नपइन्ना, वरइ कुमारं तिजयसारं ७९६ | अर्थ-उसके अनन्तर लोकोंके जागनेसे कुमरी वह आश्चर्य देखके तीन जगत्में सार ऐसे श्रीपाल कुमरको वरे कैसी है कुमरी धन्य है और पूर्ण भई है प्रतिज्ञा जिसकी ॥ ७९६ ॥ रायाईओ य जणो, जा चिंतइ वामणो हहा वरिओ। ताव कुमारो दंसइ, सहावरूवं नियं झत्ति ७९७ | अर्थ-राजादिक लोक मनमें विचारे अहह इति खेदे वामनेको वरा उतने कुमर शीघ्र अपना मूलरूप दिखावे ७९७
आणंदिओ य राया, परिणावेऊण तेण नियधूयं । दावेइ हयगयाई, धणकंचणपूरियं भवणं ॥७९८॥ ___ अर्थ-तब राजा हर्षित भया उस कुमरको अपनी पुत्रीका पाणिग्रहण करावे और घोड़ा हाथी वगैरह देवे धन सोने वगैरहसे भरा हुआ घर देवे ॥ ७९८ ॥
॥१०
॥
For Private and Personal Use Only