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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-डुंब कहे उस राजाके जमाईको मारनेमें एक ऐसा उपाय है जिस कारणसे राजाके जमाईका कुल याने वंश | किसीने जाना नहीं है मैं उस राजाके जमाईको डोंम करके प्रगट करूंगा ॥ ७०५ ॥ तत्तो राया जामाउयंपि, तं जमगिहमि पैसेही । एवं च कए jण, होही तुह कज्ज सिद्धीवि ॥ ७०६ ॥ | अर्थ-तदनंतर राजा उस जमाईकोभी यमराजाके घर पहुंचा देगा ऐसे करनेसे निश्चय तुम्हारे कार्यकीभी सिद्धी होगी ॥७०६॥ मंतण तेण तुट्ठो, धवलो अप्पेइ कोडिमुल्लंपि । नियकरमुद्दारयणं, वेगेणं तस्स पाणस्स ॥ ६०७ ॥ | अर्थ-उस विचारसे संतुष्टमान भया धवल कोड़ कीमतकी अपने हाथकी मूदड़ी डोंमको शीघ्र देवे ॥७०७॥ | तुट्टो सोवि हुडंबो सकुडुंबो जाइ निवगवक्खस्स। हिटिममहीइ चिट्ठइ, गायंतो गीयमइमहुरं ॥ ७०८ ॥ | अर्थ-वह डोंमभी मूदड़ी पाके बहुत खुशी भया कुटुंब सहित राजभवनके द्वार जावे अत्यन्त मधुर गीत गाता | 81हुआ राजाके गोखड़ेकी नीचेकी भूमिमें रहे ॥ ७०८ ॥ ताणं कोमलकंठुब्भवेण, गीएण हरियमणकरणो। राया भणेइ भो भो, जं मग्गह देमि तं तुज्झ ॥७०९॥ ___ अर्थ-उन डोंमोंका कोमल कंठसे उत्पन्न भए गीतसे हरण भया मन और श्रोत्रइन्द्रिय जिसका ऐसा राजा वसुपाल बोले अहो गायनो जो तुम मांगो सो मैं तुमको देउं ॥ ७०९ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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