________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
__ अर्थ-अन्यदिनमें वह धवलसेठ स्त्रीका वेष करके कामग्रहसे गहला भया आपही मदना श्रीपालकी स्त्रियोंके आवासमें प्रवेश किया कैसा है धवल अतिशय पापिष्ठ है ॥ ६८७ ॥
जाव पलोएइ तहिं, ताव न पिच्छेइ ताओमयणाओ। पुरिओ ठियाउमालाइ,-सएण अदिस्सरूवाओ॥ है अर्थ-जितने उस आवासमें देखे उतने आगे रहीं भई दोनों स्त्रियोंको नहीं देखे कैसी हैं दोनों स्त्रियों मालाके
प्रभावसे अदृश्य भया है रूपजिन्होंका ॥ ६८८॥
सो रागंधो अंधुत्व, जाव भमडेइ तत्थ पवडंतो। तो दासीहिं सुणउब्ब, कट्टिओ कुहि ऊण वहिं ॥६८९॥ ता अर्थ-वह धवल कामरागसे आंघे पुरुषके जैसा इधर उधर गिरता हुआ जितने मदनाओंके आसपासमें फिरता है
उतने मदानाओंकी दासिओंने कुत्तेके जैसा कूटके बाहिर निकाला ॥ ६८९॥ 18| इत्तो ते वोहित्था, मग्गेणऽन्नेण निजमाणावि । सयमेव कुंकुणतडे, पत्ता मासंमि किंचूणे ॥ ६९० ॥
| अर्थ-इधरसे वे जहाज और मार्गसे लेजाता थकां आपहीसै कुछकम एक महीना होनेसे कुंकण तटमें प्राप्त हुए ॥६९०॥ पढमं उत्तरिऊणं, धवलो जा जाइ पाहुडविहित्थो। रायकुलं ता पासइ, नरवरपासंमि सिरिपालं ॥६९१॥|
अर्थ-अब धवल पहले जहाजसे उतरके भेटना लेके राजकुलमें गया राजाको जाके भेटना देवे उतने राजाके 18|पासमें बैठाहुआ श्रीपाल कुमरको देखे ॥ ६९१॥
SANGACASSASARDARS
954545ASAUGARCAM
For Private and Personal Use Only