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श्रीपाल - चरितम्
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विणओणयाउ ताओ, मयणाओ दोवि विम्हियमणाओ । भणियाओ देवीए, सपसायं एरिसं वयणं ६७४ अर्थ - विनयसे नम्र और आश्चर्य भया मनमें जिन्होंके ऐसी दोनों मदनाओंको चक्रेश्वरी देवी प्रसन्नता सहित ऐसा वचन बोली ।। ६७४ ॥
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वच्छा वह तुम्हतणउ, गरुईरिद्धिसमेउ । मासभितरिनिच्छइण, मिलिसइ धरहु म खेउ ॥ ६७५ ॥ अर्थ- हे पुत्रियो तुम्हारा वल्लभ भर्तार बड़ी ऋद्धिसहित एक महीने में मिलेगा तुम्हारे खेद करना नहीं ॥ ६७५ ॥ | एम भणेविणु चक्कहरि, परिमलगुणेहिं विसाल । मयणह कंठिहिं पक्खिवइ, सुरतरुकुसुमह माल ॥६७६॥
अर्थ - इस प्रकार से कहके चक्रेश्वरी देवी मदनसेना और मदन मंजूषा दोनों स्त्रियोंके कंठमें सुगंधगुण करके विशाल कल्पवृक्षके पुष्पोंकी माला पहनाई ॥ ६७६ ॥
तुम्हह दुहु न देखिसइ, मालह तणई पमाणि । एम भणेविणु चक्कहरि, देवि गई नियट्ठाणि ॥ ६७७ ॥
अर्थ - मालाके प्रभावसे तुमको दुष्ट पुरुष नहीं देखसकेगा ऐसा कहके चक्रको धारनेवाली चक्रेश्वरी देवी अपने स्थान गई यहां तीन दोहा छंद है ॥ ६७७ ॥ पभणंति तओ तिन्निवि, ते पुरिसा सरलबुद्धिणो धवलं । दिट्टं कुबुद्धिदायग, - फलं तए एरिसविवागं ६७८
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भाषाटीकासहितम् -
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