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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपालचरितम् भाषाटीकासहितम्. अर्थ-वादमें क्या भया सो कहते हैं पहले क्षेत्रपाल प्रगट भया कैसा है क्षेत्रपाल डम २ शब्द होवे जिसमें ऐसा डमरु बजाता हुआ और अत्यन्त रौद्र रूपका धारने वाला और खग है हाथमें जिसके ऐसा तलवार सहित ॥ ६६५॥ तो माणिपुन्नभद्दा, कविलो तह पिंगलोइमे चउरो। गुरुमुग्गरवग्गकरा, पयडीहया सुरा वीरा ॥ ६६६ ॥ | अर्थ-तदनंतर क्षेत्रपालके पीछे माणिभद्र १ पूर्णभद्र २ कपिल ३ पिंगल ४ यह चार वीरदेव प्रगट भए कैसे हैं ये हावीरदेव बड़े मुद्रशस्त्र विशेष हैं हाथमें जिन्होंके ऐसें ॥ ६६६ ॥ कुमुयंजणवामणपुप्फदंत,-नामेहिं दंडहत्थेहिं । पयडीयं च तओ, चउहिंवि पडिहारदेवहिं॥ ६६७॥ ___ अर्थ-और तदनंतर कुमुद १ अंजन २ वामन ३ पुष्पदंत ४ ये चार प्रतिहार देव प्रगट भए कैसे हैं ये देव दंड है हाथमें जिन्होंके ऐसे ॥ ६६७ ॥ |चक्केसरी य देवी, जलंतचक्कदुयं भमाडंती। बहदेवदेविसहिया, पयडीहया भणइ एवं ॥ ६६८॥ __ अर्थ-और चक्रेश्वरी देवी प्रगट होके इस प्रकारसे कहे कैसी हैं चक्रेश्वरी देवी देदीप्यमान दोनों हाथोमें चक्रघुमावती और बहुत देव देवियां करके सहित ॥ ६६८॥ गिन्हह एयं, पढमं दुब्बुद्धिदायगं पुरिसं। जं सवाणत्थाणं, मूलं एसुच्चिय न अन्नो ॥ CLASCCC ॥८५॥ रसि For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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