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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir **CHOSASSASSAGGIO इओ य जइया समुदमज्झे,पडिओ कुमरोतया धवल-सिट्ठी,तेणकुमित्तेण समं,संतुट्ठोहिययमझमि ५३ PI अर्थ-इधरसे जब कुमर समुद्र में गिरा तव धवल सेठ उस कुमित्रके साथ मनमें बहुत संतोष पाया ॥ ६५३॥ | लोयाण पच्चयत्थं, धवलो पभणेइ अहह किं जायं, जं अम्हाणं पहु सो, कुमरो पडिओ समुदंमि ६५४३ 8. अर्थ-लोगोंको प्रतीति उत्पन्न करनेके लिए धवल प्रकर्षपने करके कहे अहह इति खेदे यह क्या भया बहुत है| बुरा कार्य भया जिसकारणसे जो हमारा स्वामी कुमर समुद्रमें गिरा ॥ ६५४ ॥ हिययं पिटेइ सिरं च, कुटेइ पुक्करेइ मुक्कसरं । धवलो मायावहुलो, हा कत्थगओसि सामि तुम ६५५ | अर्थ-अब बहुत है माया जिसके ऐसा धवल सेठ छाती कूटे और मस्तक कूटे और ऊंचे स्वरसे जैसा होय वैसा पुकार करे कैसे सो केहते हैं हे स्वामिन् आप कहा गए हो इसप्रकारसे पुकार करे ॥ ६५५ ॥ होतं सोऊणं मयणाओ, ताओ हाहारवं कुणंतीओ। पडियाओ मुच्छियाओ, सहसा वजाहयाउव्व ॥६५६॥ है। अर्थ-वह धवलका किया हुआ पुकार सुनके मदनसेना मदनमंजूषा दोनों स्त्रियों हाहारव करती वजाहतके जैसी मूछित होके गिरी ॥ ६५६ ॥ जलणिहिसीयलपवणेण, लद्धसंचेयणाउ ताउ पुणो। दुक्खभरपूरियाओ, विमुक्कपुक्काउ रोयंति ६५७।। Attractor For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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