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अह चित्तमासअट्ठाहियाओ, विहियाओ तत्थ विहिपुवं । सिरिसिद्धचक्वपूया-विहीवि आराहिओ तेण ॥ ५८८ ॥
अर्थ —तदनंतर श्रीपाल कुमरने उस नगरीमें विधिपूर्वक चैत्रमासकी अट्ठाई करी सिद्धचक्रकी पूजा विधिसे आराधन करी ॥ ५८८ ॥
अन्नदिणे तस्स जिणालयस्स, सुबलाणयंमि आसीणो ।
राया कुमारसहिओ, कारावइ जाव जिणमहिमं ॥ ५८९ ॥
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अर्थ - अन्य दिनमें उस जिनमंदिरका बलानक नाम लोगोके बैठनेका मंडप वहां कुमरसहित राजा बैठे हैं जितने भगवानका महिमा करावे है ॥ ५८९ ॥
ता दंडपासिएणं विन्नत्तो, देव ? सत्थवणिएणं । एगेण दाणभंगं, काओ आणावि तुह भग्गा ॥ ५९० ॥
अर्थ - उतने कोटवालने आके राजासे वीनती कही हे देव हे महाराज एक सार्थ वाणिएने दाण भंग किया अर्थात् महसूलकी चोरी करी इसलिए आपकी आज्ञाका भंग किया है ।। ५९० ॥
सो अस्थि मए बद्धो, एसो को तस्स सासणाएसो । राया भणेइ आणा, - भंगे पाणा हरिजंति ॥ ५९१ ॥
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