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RECORDA
पारमें जीवोंको जा५६६॥
समयविस्सुएण
॥ ५६७ ॥
न तं सुहं देइ पिया न माया, जं दिति जीवाणिह सूरिपाया, ।
तम्हा ह ते चेव सया महेह, जं मुक्खसुक्खाइं लहं लहेह ॥ ५६६ ॥ अर्थ-इस संसारमें जीवोंको जो सुख मातापिता नहीं देवे है वह सुख आचार्य देवेहै ऐसा आचार्योंको तुम निरंतर पूजो जिससे मोक्षसुख शीघ्र पावो ॥ ५६६ ॥
सुतत्थसंवेगमयस्सुएणं, सन्नीरखीरामयविस्सुएणं, ।
पीणंति जे ते उवझायराए, झाएह निच्चंपि कयप्पसाए ॥ ५६७ ॥ अर्थ-उपाध्याह सूत्रार्थ संवेगमय श्रुत करके भव्यजीवोंको तृप्तकरे है उन उपाध्याय राजको निरंतर तुम ध्यावो सुत्रमीठे पानीके जैसा अर्थ दूधके जैसा संवेगमयश्रुतको अमृतकी उपमा है कैसे हैं उपाध्याय राज किया है प्रसाद अनुग्रह जिन्होंने ऐसे ॥ ५६७ ॥
खंते य दंते य सुगुत्तिगुत्ते, मुत्ते पसंते गुणजोगगुत्ते, ।
गयप्पमाए हयमोहमाए, ज्झाएह निच्चं मुणिरायपाए ॥ ५६८ ॥ अर्थ-क्षमायुक्त दमयुक्त नाम इन्द्रियमनको दमनेवाले मनोगुप्त्यादि गुप्त और मुक्त निर्लोभी प्रशान्त नाम शान्त रस युक्त गुणोंके सम्बन्ध सहित गया मदादि प्रमाद जिन्होंसे मोहमाया रहित ऐसे मुनिराजोंको तुम निरंतर ध्यावो ॥५६८॥
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श्रीपा.च.१३/
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