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श्रीपाल-18| अर्थ-श्रीमरुदेवी स्वामिनीका उदरही गुफा उसमें निर्भय केसरी सिंहके बालक सदृश और प्रचंड भुजदंड करके भाषाटीकाचरितम् खंडित किया हैं दुर्धर मोहको जिसने ऐसा हे देव आपके अर्थ नमस्कार होवो ॥ ५४८ ॥
| सहितम्. इक्खागुवंसभूसण,गयदूसण दुरियमयगलमइंद, चंदसमवयण वियसिय, नीलुप्पलनयण तुज्झनमो॥ ___ अर्थ-हे इक्ष्वाकुवंशभूषण और गए हैं दूषण जिससे ऐसे हेगत दूषण और पापही मदोत्कट हाथी उन्होंके हटाने में सिंहके जैसा और चन्द्र के तुल्य मुखजिसका और विकसित नीलकमलके सदृश नेत्रजिन्होंके ऐसे हे प्रभो आपको नमस्कार होवो ॥ ५४९॥ कल्लाणकारणुत्तम,-तत्तकणयकलससरिससंठाण ?।कंठट्रियकलकुंतल, नीलप्पलकलिय तुज्झ नमो ५० __ अर्थ-कल्याणका कारण जो उत्तम तपा हुआ सोना उसका जो कलश उसके सदृश संस्थान आकार जिन्होंका उसका सम्बोधन और कंठमें रहे हुए मनोहर पांचवीमुट्ठी सम्बन्धी केश वह ही नीलोत्पल उन्हों करके युक्त अर्थात् कलशके कंठमें नीलोत्पल कमल होते हैं वैसा प्रभुके कंठमें बाल शोभते हैं ऐसे आपको नमस्कार होवो ॥ ५५०॥
आईसर जोईसर,-लयगयमणलक्खलक्खियसरूव, भवकूवपडियजंतुतारण,-जिणनाह तुज्झ नमो॥५१॥ | अर्थ-हे आदीश्वर और योगीश्वरोंके लयगत मनसे जाना जाय स्वरूप जिसका उसका सम्बोधन हे योगीश्वर और 5॥७॥ भवरूप कूपमें गिरते हुए प्राणियोंको तारनेवाले ऐसे हे जिननाथ आपको नमस्कार होवो ॥ ५५१॥
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