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श्रीपाल- चरितम् ॥६०॥
PASSESORIISISAASAS
अन्नं च मज्झपुत्ती, पाणोहितोवि वल्लहा अस्थि । नामेण मयणसेणा, तं च तुमं पसिय परिणेसु ॥४६५॥ भाषाटीकाPI अर्थ-औरभी मेरे प्राणोंसेभी वल्लभ मदनसेना नामकी पुत्री है उस पुत्रीका प्रसन्न होके पाणिग्रहण करो ॥४६५॥
सहितम्कुमारेण भणियमहं, विदेसिओ तह अनायकुलसीलो, । तस्स कहं नियकन्ना दिजइ सम्मं वियारेसु ४६६ | अर्थ-कुमरने कहा मैं परदेशी हूं और मेरा कुलाचार तुमने नहीं जाना है अर्थात् अज्ञात कुलशील मेरेको अपनी 12 कन्या कैसे देते हो हेमहाराज कन्या प्रदानमें अच्छी तरहसे विचार करना ॥ ४६६ ॥ पभणेइ महाकालो, आयारेणावि तुह कुलं नायं । न य कारणे वि एसो, कुणसु इमं पत्थणं सहलं ४६७ ___ अर्थ-इस प्रकारसे कुमरने कहा तथापि महाकाल राजा बोले हमने आचारसेभी आपका कुल जाना है और अपना विदेशीपना जो कहा उसपर कहते हैं कन्या परदेशीको नहीं देना ऐसा नियम नहीं है इसलिए यह हमारी प्रार्थना सफल करो ॥ ४६७ ॥
आमिति कुमारेणं भणिए, महया महसवेण निवो। परिणावइ नियधूयं, देइ सिरिं भूरिवित्थारं ॥४६८॥ | अर्थ-तब कुमरने राजाका वचन अंगीकार किया बड़े उत्सवके साथ महाकाल राजा अपनी पुत्रीको पर्णावे बहुत ८ ॥६॥ विस्तार जिसका ऐसी लक्ष्मी देवे ॥४६८॥
ANASHER
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