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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है। अर्थ-तब कुमरने कहा हेताततुल्य पितासदृश आपके पास जीविकाका द्रव्य लेनेसे कोई प्रयोजन नहीं है किंतु |मैं देशान्तर जानेवालाहूं इसवास्ते मैं तुम्हारे साथमें आऊं ॥ ४२१॥ जइ भाडएण चडणं, देसि ममं हरसिओ तओ सिट्टी। मग्गेइ भाडयं पइमासं, दीणारसयमगं ॥४२२॥ al अर्थ-जो भाडालेके मेरेको जहाजमें बैठाओ तो मैं तुम्हारे साथमें आऊं तदनंतर सेठ हर्षित होके एक २ महीनेका सौ २ सोनयिया भाड़ा मांगे ॥ ४२२॥ तं दाऊणं चडिए कुमरे मूलिल्लवाहणे तस्स । भेरीउ ताडियाओ, पत्थाणे रयणदीवस्स ॥ ४२३ ॥ PI अर्थ-वह भाड़ा देके श्रीपालकुमर सेठके मूल जहाजमें बैठा रत्नद्वीपके सन्मुख चलनेकेवास्ते भेरी बजाई गई ॥४२३॥12 हक्कारिजति सढे, तह वड्डिजति सिक्वयाओ य । चालिजते सुकाणयाइं, आउल्लयाइं च ॥ ४२४ ॥ __ अर्थ-उस वक्तमें पढ वस्त्र मई जहाजका उपकरण विशेषवायुपूरणेके लिए जहाजपर प्रसारण किया जावे तथा छींका रज्जुमई चढ़नेका उपकरण विशेष चढ़नेकेवास्ते बांधा जावे तथा सोंकानक जहाजोंके अग्रभागवर्ती ऊर्ध्व काष्ठ चाटु |विशेष चलाए जावें आबुल्लकानि काष्ठमई चलाने के उपकरण चलाए जावें ॥ ४२४ ॥ श्रीपा... एगे मवंति धुवमंडलं च, एगे हरंति घामत्तं । एगे मवंति वेलं, एगे मग्गं पलोयंति ॥ ४२५ ॥ HASALASAHERELES For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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