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गोचरचर्या-सूत्र पडिकमामि गोयरचरियाए, भिक्खायरियाए उग्घाड-कवाड-उग्घाडणाए, साणा-वच्छा-दारासंघट्टणाए, मंडी-पाहुडियाए, बलि-पाहुडियाए, ठवणापाहुडियाए,संकिए, 'सहसागारे, अणेसणाए, पाणभोयणाए, बीयभोयणार, हरियभोयणाए, पच्छाकम्मियाए, पुरेकम्मियाए, अदिट्ठहडाए, दग-संसट्ठ-हडाए, रय-संसह-हडाए, पारिसाडणियाए, पारिद्वावणियाए, ओहासण-भिक्खाए
जं उग्गमेणं, उप्पायणेसणाएअपरिसुद्धं, परिग्गहियं, परिभुत्तं वा जं न परिदृवियं,
तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ! -सहसागारिए ऐसा भी कुछ प्रतियों में पाठ है। परन्तु जिनदास महत्तर और हरिभद्र आदि प्राचीन श्राचार्यों ने 'सह सागारे' पाठ का ही उल्लेख किया है।
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