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शय्या सूत्र
मैंने तो कुछ नहीं किया ?' परन्तु संयम पथ का श्रेष्ठ साधक ऐसा नहीं कह सकता । वह तो ज्ञात-अज्ञात सभी भूलों के प्रति अपना उत्तरदायित्व ढ़ता से निभाता है । वह अपने साधना - जीवन के प्रति किसी भी अवस्था में बेखबर नहीं रह सकता ।
यदि सूक्ष्म दृष्टि से विचार किया जाय तो स्वप्न जगत हमारे जागृत जगत का ही प्रतिविम्ब है । प्रायः जैसा जागृत होता है, वैसा ही स्वप्न होता है । यदि हम स्वप्न में भ्रान्त रहते हैं, संयम सीमा से बाहर भटक कर कुछ विपर्यास करते हैं तो इसका अर्थ है अभी हमारा जागृत भी सुदृढ़ नहीं है । स्वप्न की भूले हमारी आध्यात्मिक दुर्बलताओं का संकेत करती है । यदि साधक अपने स्वप्न जगत पर बराबर लक्ष्य देता रहे तो वह अवश्य ही अपने जागृत को महान बना सकता है । जीवन के किस क्षेत्र में अधिक दुर्बलता है ? संयम का कौन-सा अंग अपरिपुष्ट है ? - इसकी सूचना स्वप्न से हमें मिलती रहेगी और हम जागृत दशा में उसी पर अधिक चिन्तन मनन का भार देकर उसे सबल एवं सशक्त बनाते रहेंगे | आदर्श के प्रति जागरूकता संसार की एक बहुत बड़ी शक्ति है । यदि साधक चाहे तो क्या जागृत और क्या स्वप्न प्रत्येक दशा में अपने आप को सदाचारी, संयमी एवं प्रतिज्ञात व्रत पर सुदृढ़ बनाए रख सकता है ।
For Private And Personal
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प्रस्तुत सूत्र के प्रारंभ में सोते समय के कुछ प्रारंभिक दोष बतलाए, हैं । बारबार करवटें बदलते रहना, बारबार हाथ पैर आदि को सिकोड़ते और फैलाते रहना - मन की व्याक्षिप्त एवं अशान्त दशा की सूचना है । जिन लोगों का मन श्रधिक चंचल एवं इधर-उधर की बातों में अधिक उलझा रहता है, वह शय्या पर घंटों इधर-उधर करवटें बदलते रहते हैं, हाथ पैर आदि को बारबार सिकोड़ते - पसारते रहते हैं; बारबार
खे बन्द कर सोने का उपक्रम करते हैं, फिर भी अच्छी तरह सो नहीं पाते । साधक जीवन के लिए मन की यह भूमिका अच्छी नहीं मानी जाती । साधक का कर्तव्य है कि सोने से पहले मन को सौंकल्प-विकल्पों