________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
[
1
लिखा है, ये सब श्राप पुस्तक पढ़कर जान सकेंगे । हम स्वयं अपनी श्रोर से इस सम्बन्ध में क्या लिखें ? उपाध्याय श्रीजी ने हमारे समाज को नई भाषा में नया चिन्तन देने का जो महान् उपक्रम किया है, उसे भविष्य की परम्परा कभी भूल न सकेगी। उपाध्याय श्रीजी के विराट अध्ययन की छाया; उनके ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है ।
सन्मति ज्ञान- पीठ लोहामण्डी, श्रागरा
श्रमण सूत्र के मुद्रण का कार्य बड़ी शीघ्रता में हुआ है । इधर मुद्रण चल रहा था और उधर साथ-साथ लेखन भी चलता था । इधर दो महीने से उपाध्याय श्रीजी का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहा है । इस विचित्र स्थिति में सम्भव है मुद्रण एवं संशोधन सम्बन्धी कुछ भूलें रही हों, पाठक उनके लिए हमें क्षमा करेंगे ।
}
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal
विनीत
रतनलाल जन