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श्रमण-सूत्र
(१५) सम्मार्जित एवं स्वच्छ दर्पण जिस प्रकार प्रतिबिम्ब-ग्राही होता है, उसी प्रकार साधु मायारहित होने के कारण शुद्ध हृदय होता है, शास्त्रों के भावों को पूर्णतया ग्रहण करता है।
(१६) जिस प्रकार हाथी रणाङ्गण में अपना दृढ़ शौर्य दिखाता है, उसी प्रकार साधु भी परीघहरूप सेना के साथ युद्ध में अपूर्व आत्मशौर्य प्रकट करता है एवं विजय प्राप्त करता है।
(१७) वृषभ जैसे धोरी होता है, शकट-मार को पूर्णतया वहन करता है, उसी प्रकार साधु भी ग्रहण किए हुए व्रत नियमों का उत्साहपूर्वक निर्वाह करता है।
(१८) जिस प्रकार सिंह महाशक्तिशाली होता है, फलतः वन के अन्य मृगादि पशु उसे हरा नहीं सकते; उसी प्रकार साधु भी श्राध्यात्मिक शक्तिशाली होते हैं, परीषह उन्हें पराभूत नहीं कर सकते ।
(१६) शरद् ऋतु का जल जैसे निर्मल होता है उसी प्रकार साधु का हृदय भी शुद्ध = रागादि मल से रहित होता है।
(२०) जिस प्रकार भारण्ड पक्षी अहर्निश अत्यन्त सावधान रहता है, तनिक भी प्रमाद नहीं करता; इसी प्रकार साधु भी सदैव संयमानुष्ठान में सावधान रहता है, कभी भी प्रमाद का सेवन नहीं करता ।
(२१) जैसे गैंडे के मस्तक पर एक ही सींग होता है, उसी प्रकार साधु भी राग-द्वेष रहित होने से एकाकी होता है, किसी भी व्यक्ति एवं वस्तु में आसक्ति नहीं रखता।
(२२) जैसे स्थाणु (वृक्ष का हूँठ) निश्चल खड़ा रहता है उसी प्रकार साधु भी कायोत्सर्ग आदि के समय निश्चल एवं निष्प्रकंप खड़ा रहता है।
(२३) सूने घर में जैसे सफाई एवं सजावट आदि के संस्कार नहीं होते, उसी प्रकार साधु भी शरीर का संस्कार नहीं करता । वह बाह्य शोभा एवं शृङ्गार का त्यागी होता है।
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