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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्तार पौरुषी-सूत्र जाह संथारं, बाहुबहाणेण वामपासेणं । कुक्कुडि-पायपसारण अतरंत पमज्ज‍ भूमिं ॥ २ ॥ संकोsय संडासा, Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir दव्वाई - उपयोगं, उच्चते काय - पडिलेहा । ३४३ ऊसासनिरु भणालोए ॥ ३ ॥ भावार्थ [ संथारा करने की विधि ] मुझको संथारा की आज्ञा दीजिए । [ संथारा की आज्ञा देते हुए गुरु उसकी विधि का उपदेश देते हैं ] मुनि बाईं भुजा को तकिया बनाकर बाईं करवट से सोचे | और मुर्गी की तरह ऊँचे पाँव करके सोने में यदि श्रसमर्थ हो तो भूमि का प्रमार्जन कर उस पर पाँव रक्खे | दोनों घुटनों को सिकोड़ कर सोचे । करवट बदलते समय शरीर की प्रतिलेखना करे । जागने के लिए ' द्रव्यादि के द्वारा श्रात्मा का For Private And Personal १ - मैं वस्ततुः कौन हूँ और कैसा हूँ ? इस प्रश्न का चिन्तन करना द्रव्य चिन्तन है | तत्त्वतः मेरा क्षेत्र कौनसा है ? यह विचार करना क्षेत्रचिन्तन है । मैं प्रमाद रूप रात्रि में सोया पड़ा हूँ अथवा अप्रमत्त भावरूप दिन में जागृत हूँ ? यह चिन्तन कालचिन्तन है । मुझे इस समय लघुशंका आदि द्रव्य बाधा और रागद्वेष आदि भाववाधा कितनी है ? यह विचार करना भावचिन्तन है '
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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